________________ 234 जीतकल्प सभाष्य 'छेदेणापरियाएऽणवट्ठपारंचियावसाणे य / मूलं मूलावत्तिसु, बहुसो य पसज्जणे भणितं॥८६॥ 2301. छिज्जते परियाए, जस्स तु छिण्णो हु णिरवसेसो तु। ____तवअणवढे ढे, पारंचित वावसाणेसु॥ 2302. मूलावत्तिसु एसू, पुणो पुणो सज्जते तु जो सगणे। सव्वेसु वि एतेसुं, मूलं तू होति दातव्वं // उक्कोसं बहुसो वा, पदुद्दचित्तो तु तेणियं कुणति। पहरति जो य सपक्खे, णिरवेक्खो घोरपरिणामो // 87 // 2303. अणवटुप्पो दुविधो, आसायण तह य होति पडिसेवी। आसायणअणवटुं, समासतोऽहं इमं वोच्छं / 2304. 'तित्थकरं संघ सुतं, आयरियं गणधरं महिड्डीयं"। एते आसाएंते, पच्छित्ते मग्गणा इणमो' / 2305. पढम बिति देस सव्वे, नवमं सेसेसु चउगुरू देसे। पडिसेवणअणवटुं, अहुणा तु इमं पवक्खामि // 2306. उक्कोसं तु विसिटुं, पुणो पुणो एय होति बहुगं तु। कोहादी व अतीव तु, पदुट्ठचित्तो मुणेतव्वो॥ 2307. पडिसेवणअणवट्ठो, 'होती तिविधो इमों समासेणं' / 'साहम्मिअण्णधम्मियतेण्णे तह हत्थताले य" / / 2308. साहम्मितेण्ण दुविधं, सच्चित्तं तह य होति अच्चित्तं / अच्चित्तोवधि भत्ते, सचित्त सेहावहारो तु॥ 2309. साहम्मिउवधिहरणं, 'वावारण झामणा'५ य पत्थवणा। तं पुण सेहमसेहो, हरेज्ज अद्दि8 दिटुं वा॥ 1. 'साणेसु (ला)। 4. “यर पवयण सुते, आयरिए गणहरे महिड्डीए (ब)। 2. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में 'मूलारिहं गतं' 5. होड़ (ब 4975.5060) / का उल्लेख है। 6. तिविधो सो होइ आणुपुव्वीए (बृ 5062) / 3. प्रतियों एवं मु में जीसू 87 की गाथा 2305 वीं भाष्य 7. धम्मिय हत्थादालं व दलमाणे (ब)। गाथा के बाद है लेकिन यह गा. 2302 के बाद होनी ८.(ला)। चाहिए क्योंकि गा.२३०२ तक मूल प्रायश्चित्त का वर्णन 9. वावाण सारवणा (ब, ला), झावणा (मु)। है, उसके बाद अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त का वर्णन है।