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________________ पाठ-संपादन-जी-७३-७७ 229 2253. गच्छाहि णिग्गता जे, पडिमापडिवण्णगा य जिणकप्पी। जे यावि सयंबुद्धा, इय एगविहारिणो तिविधा // 2254. ते णिच्चमप्पमत्ता, जइ आवजे कहंचि कम्मुदया। तक्खणमेव तु तं पट्ठवेंति णियमा य सक्खी वा॥ 2255. संघतणधितिसमग्गा', सत्ताहिट्ठियमहंतजोगधरा। सुबहु पि हु आवण्णा, वहंति निरणुग्गहं सव्वं // 2256. आलोयणोवयुत्ता, ते तू आलोयणाएँ सुझंति। तेसिं जाव तु मूलं, करेंति सयमेव सुज्झंति // 2257. अणिगूहितबल-विरिया, जहवादीकारगा य ते धीरा। उत्तमसद्धसमण्णागता य सुज्झति ते नियमा॥ 2258. गणपडिबद्धा दुविधा, जिणपडिरूवी य होंति थेरा य। जिणपडिरूवी दुविधा, 'विसुद्धपरिहारऽहालंदी"५॥ 2259. ते णिच्चमप्पमत्ता, जइ आवजे कहंचि कम्मुदया। तक्खणमेव हु तं पट्टवेंति कप्पट्ठियसगासे / 2260. संघतणधितिसमग्गा, सत्ताहिट्ठियमहंतजोगधरा। सुबहुं पि हु आवण्णा, वहति णिरणुग्गहं धीरा॥ 2261. अट्ठविधा पट्टवणा, तेसिं आलोयणाइ मूलता। तं पट्ठवेत्तु धीरा, सुज्झंति विसुज्झचारित्ता॥ 2262. थेरा वि विसुद्धतरा, तेसु वि जइ केइ किंचि आवजे। तक्खणमेव हु तं पट्टवेंति नियमा गुरुसगासे / 2263. एत्थ य पट्ठवणं पति, आयरिओ विहिमिणं अजाणतो। लंछेति य अप्पाणं, तं पि य सीसं ण सोधेति // 2264. पुरिसे त्ति गतं दारं, इमं तु पडिसेवणं पवक्खामि / सा पुण चतुहा सेवण, आउट्टियमादिमाहंसु॥ 1. संचयण' (पा)। 4. सुज्झति (ला)। 2. गा. 2255 से 2257 तक की गाथाएं ता प्रति में नहीं हैं। ५.र अहा" (ता)। 3. 'लोवणो (पा, ब, ला)। 6. सेवणा (ता, मु)।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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