SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 226 जीतकल्प सभाष्य 2216. एसाऽऽदेसो एक्को, अयमण्णो बितियओ तु आदेसो। चरिमं चिय आवण्णे, कतकरणगुरुम्मि अणवट्ठो // 2217. अकतकरणम्मि मूलं, मूलमुवज्झाएँ होति कतकरणे। अकतकरणम्म छेदो, इय' णेयं अड्डकंतीए // 2218. एमेव य अणवटुं, आवण्णे होंति दोण्णि आदेसा। निरवेक्खो ण भणितेत्थ', जं दोण्णि ण होंति तस्सेते॥ 2219. अहुणा मूलावण्णो, सव्वे मूलं तु होति निरवेक्खे। मूलं चेव गुरुस्स वि, कतकरणे अकत छेदो तु॥ 2220. कतकरणउवज्झाए, छेदे अकतम्मि होंति छग्गुरुगा। इय अड्डोकंतीए, णेयं अयमण्ण आदेसो॥ 2221. सावेक्खो त्ति व काउं, गुरुस्स कडजोगिणो भवे छेदो। अकतकरणम्मि छग्गुरु, 'कतकरण उवज्झें छग्गुरुगा"। 2222. अकते छल्लहुगा तू, इय अड्डोकंतिए तु णातव्वं / अहुणा छग्गुरुगे तू, आढत्तं ठाति गुरु भिण्णे // 2223. छल्लहुगाढत्तम्मी, ठायति लहुगे तु भिण्णमासम्मि। चतुगुरुआढत्तम्मी, अन्नम्मी ठाति गुरुवीसे // 2224. चतुलहुगे वीसाए, 'गुरुमासे ठाति पण्णरसहिं तु / लहुगे लहुपण्णरसे, गुरुभिण्णे ठाति गुरुदसहिं / 2225. लहुभिण्णे दसलहुगे, गुरुवीसा अंतें ठाति गुरुपणगे। लहुवीसा आढत्तं, अंतम्मी ठाति लहुपणगे। 2226. पण्णरसहिं गुरुगेहिं, अंतम्मी अट्ठमम्मि ठायति तु / पण्णरसहिं लहुगेहिं, अंतम्मी ठाति छट्ठम्मि॥ 2227. दसगुरुगे आढत्तं, अंतम्मी ठायती चतुत्थम्मि। दसलहुगे आढत्ते, ठायति तू अंतें आयामे // 1. अयं (ला)। 2. अड्ड (ब)। 3. भणिएत्थं (पा, ब, ला)। 4. इति अड्डोकंतिए नेयं (व्य 167), अड्डोक्कंतीए णेयव्वं (नि 6657) / 5. गुरुमीसे (ता)। 6. इस पाठ के स्थान पर सभी प्रतियों में गुरुमासे ठाति गुरुग पण्णरसे' इति प्रत्यन्तरे का उल्लेख है।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy