________________ पाठ-संपादन-जी-७३ 225 2204. भिक्खू गीताऽगीता, गीतत्थ थिराऽथिरा य बोद्धव्वा। कतकरण अकतकरणा, एक्केक्का होंति ते दुविधा। 2205. अग्गीता वि थिराऽथिर, कताऽकता चेव होंति एक्केक्का। कतकरण अकतकरणा, केरिसगा होति? सुणसु इमे / / 2206. छट्ठऽट्ठमादिएहिं, कतकरणा ते तु उभयपरियाए। अभिगतकतकरणतं, 'जं जोग तवारिहार केई॥ 2207. निरवेक्खा एगविहा, सावेक्खाणं तु किं निमित्तेणं / .तिविधो भेदो तु कतो, आयरियादी? इमं सुणसु // 2208. भण्णति जुवरायादी, वत्थुविसेसेण दंडों जह लोगे। तह वत्थुविसेसेणं, आयरियादीण आरुवणा // 2209. आयरिय-उवज्झाया, दोण्णि वि णियमेण होति गीतत्था। गीतत्थमगीतत्था, भिक्खू पुण होंति णातव्वा॥ . * 2210. कारणमकारणं वा, जतणाऽजतणा व 'णत्थऽगीतत्थे'३ / एतेण कारणेणं, आयरियादी 'तिविध भेदो" // 2211. कज्जाऽकज्ज जताऽजत, अविजाणंतो अगीतो जं सेवे। सो होति तस्स दप्पो, गीते दप्पाऽजते दोसा / / 2212. अविसिट्ठा आवत्ती, चरिमं सव्वेसि तेण सावेक्खो। चरिमं चिय कतकरणे, आयरिए अकत अणवट्ठो / 2213. कतकरणउवज्झाए, अणवट्ठो होति मूलमकतम्मि। भिक्खूगीतथिरम्मी, कतकरणे मूलमेव भवे // 2214. अकतथिरम्मी छेदो, अत्थिरकतकरणे होति सो च्चेव। अत्थिरअकते छग्गुरु, अगीतथिरकरण ते चेव // 2215. अग्गीत थिरे अकते, छल्लहुगा होंति तू' मुणेतव्वा। अग्गीतअथिरकतकरण छल्लहू चउगुरू अकते॥ 1. 'रियारा (नि)। 2. जोगा य तवांरिहा (नि 6652), जोगायतगारिहा (व्य 162, 607) / ... 3. नत्थि गी (व्य 613) / / 14. भवे तिविहा (नि 6653, व्य 170) / ' 5. कज्जमकज्ज (नि 6654) / 6. गीत (ला)। 7. व्य 171,614 / 8. थेर (ता)। 9. तु (ला)। 10. लहु (ला)।