________________ पाठ-संपादन-जी-७१ 221 2160. गच्छम्मि य णिम्माया, 'धीरा जाहे य मुणितपरमत्था। अग्गह 'अभिग्गहे या'२, उवेंति जिणकप्पिगविहारं / / 2161. नवपुव्वि जहण्णेणं, उक्कोसेणं तु दस असंपुण्णा। चोद्दसपुव्वी तित्थं, तेण तु जिणकप्प ण पवज्जे // 2162. वइरोसभसंघतणा, सुत्तस्सऽत्थो तु होति परमत्थो। . संसारसभावो वा, णातो तो मुणितपरमत्थो / 2163. 'अग्गहो ततियादीया'", पडिमाहिं गहण भत्तपाणस्स। दोहिं तु उवरिमाहिं, गेहंती वत्थपायाई॥ * 2164. 'दव्वं अभिग्गहा पुण, रतणावलिमादिगादि बोद्धव्वा। - एतेसु विदितभावो, उति जिणकप्पियविहारं // 2165. दुविधा अतिसेसा वि य, तेसि इमे वण्णिता समासेणं / . बाहिर अभिंतरगा, तेसि विसेसं पवक्खामि / / 2166. बाहिरओं सरीरस्सा, अतिसेसो तेसिमो तु बोद्धव्वो। ___ अच्छिद्दपाणिपादा, वइरोसभसंघतण धीरा // 2167. वग्गुलिपक्खसरिसगं, पाणितलं तेसि धीरपुरिसाणं / होति खओवसमेणं, लद्धी तेसिं इमाऽऽहंसु॥ 2168. माएज्ज घडसहस्सं, धारेज्ज व सो तु सागरा सव्वे। जो एरिसलद्धीए, सो पाणिपडिग्गही होति // 2169. अभिंतरअतिसेसोर, इमो उ तेसिं समासतो भणितो। उदही विव अक्खोभा, सूरो इव तेयसा जुत्ता // 2170. अव्वावण्णसरीरा, व१२ गंधा ण होति से सरीरस्स। खतमवि ण कुच्छ तेसिं३, परिकम्मं ण वि य कुव्वंति॥ 1. थेरा जे मुणितसव्वप (पंक 1364) / 2. जोग अभिग्गहे (बृ 6483) / 3. "वियारं (ता), "प्पियचरितं (ब)। 4. पंक 1365 / 5. 'रसंभओ (पा, ब, ला)। 6. पंक 1366 / 7. दोहग्गह ततियादी (पंक 1367) / 8. दव्वादभि (पंक 1368) / 9. पंक 1445 / 10. धीरो (ला); पंक 1446 / 11. “तरमति (पंक 1447) / 12. वइ (ब, पंक 1448) / 13. तेसि (ला)।