________________ 210 जीतकल्प सभाष्य 2048. उस्सुत्तं ववहरतो, कम्मं बंधति चिक्कणं / संसारं च पवड्डेति, मोहणिज्जं व कुव्वती // 2049. 'उम्मग्गदेसए मग्गदूसए मग्गविप्पडीवाए। परं मोहेण रंजेतो, महामोहं पकुव्वती॥ 2050. एवं तु उवट्ठवितो, जो पढमतरं तु अहव सामइए। ठवितो सो जेट्टयरो, कप्पपकप्पट्ठिताणं च // 2051. सपडिक्कमणो धम्मो, पुरिमस्स य' पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिमगाण जिणाणं, कारणजाते पडिक्कमणः // 2052. गमणागमणविहारे, सायं पाओ य पुरिम-चरिमाणं। नियमेण पडिक्कमणं, अतियारो होउ वा मा वा // 2053. अतियारस्स तु असती, नणु होति णिरत्थगं पडिक्कमणं / भण्णति एवं चोदग!, तत्थ इमं होति णातं तु॥ 2054. जह कोइ डंडिगो तू, रसायणं कारवेति पुत्तस्स। तत्थेगो तेगिच्छी, बेती मज्झं तु एरिसगं / / 2055. जति° दोसे 'होअगतं, अह'११ दोसो नत्थि तो गतो होति। बितियस्स हरतिर दोसं, न गुणं दोसं व तदभावा // 2056. दोसं हतूण गुणं, करेति गुणमेव दोसरहिते वि३ / ___ततियसमाहिकरस्स तु, रसायणं डंडियसुतस्स" // 2057. 'इय सइ दोसं छिंदति'१५, असती दोसम्मि निज्जरं कुणति। कुसलतिगिच्छरसायण, उवणीतमिणं१६ पडिक्कमणं / १.बृ 6423, पंक 1357 / 9. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.५५ / 2. सणाए य, मग्गं विप्पडिवातए (बृ६४२४, पंक 1358) / 10. सति (बृ 6428) / 3. इस गाथा के बाद प्रतियों में पुरिसजे? त्ति गतं' का 11. “गतो जति (बृ)। उल्लेख है। 12. हणति (बृ)। 4. इ (बृ६४२५)। 13. त्ति (पा, मु, ला)। 5. आवनि 836, पंक 1359, प्रकी 3989, प्रसा 654, 14. बृ६४२९। पंचा 17/32 / 15. जति दोसो तं छिंदति (बृ 6430) / 6. वियारे (बृ 6426) / .. 16. मुवणीयमिदं (ब)। 7. पंचा 17/33 / 17. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में 'पडिक्कमणे त्ति गतं' 8. ण भवति (बृ६४२७)। का उल्लेख है।