________________ 178 जीतकल्प सभाष्य 1714. पुढवी आउक्काए, तेऊ वाऊ परित्तवणकाए। बेइंदिय तेइंदिय, चउरो पंचिंदिएसुं च॥ 1715. एतेसुं पुढवादिसु, मीसे उ परंपरे उ णिक्खित्ते। पत्तेयं पत्तेयं, लघुपणगं दाण णिव्विगती॥ 1716. वणकायऽणंतमीसे, णिक्खित्ते परंपरं तु सोहीमा। गुरुपणगं आवत्ती, दाणं पुण होति णिव्विगतिं / / 1717. बितियाणंताऽणंतरणिक्खित्ते गुरुगपणगर आवत्ती। दाणं णिव्विगती तू, परंपरे होति एमेव / / 1718. 'बितियपरित्ताणंतरणिक्खित्ते लहुगपणगमावत्ती' / दाणं णिव्विगति तू, परंपरे होति एमेव // सहसाऽणाभोगेण व, जेसु पडिक्कमणमादियं तेसु। आभोगओ वि बहुसो, अतिप्पमाणे व निविगती॥४४॥ 1719. सहसा-अणभोगा तू, पुव्वुत्ता जेसु जेसु ठाणेसु। ____ सव्वेसु वि तेसु भवे, पडिक्कमण' पुव्वविहितं तु॥ 1720. तेसु त्ति कारणेसुं, आभोगे एत्थ जाणमाणो उ। बहुसो होति पुणो पुणों, अतिप्पमाणे वि एमेव॥ 1721. सव्वत्थ तु णिव्विगति, सोधी आभोगतो मुणेतव्वा। बहुसो वि सोहि एसा, अतिप्पमाणे वि णांतव्वा॥ धावण-डेवण-संघरिस-गमण -किड्डा-कुहावणादीसु। उक्कुट्ठि-गीत-छेलिय-जीवरुयादीसु य चउत्थं // 45 // 1722. धावण गतिमतिरित्ता, वाडि त्ति व डेवणं तु उड्डवणं / संघरिस जमलिओ तू, को सिग्घगति त्ति वच्चति तु॥ 1. “परे (ब), पर (पा, ला)। 2. गुरुप' (ता, पा, ब, ला)। 3. “णंतरपरंपरे तु लहुग (ता)। 4. "गयं (ला, पा)। 5. णमभिहियं (ला)। 6. य (ला)। 7. पडिकमणं (पा, ब, ला)। 8. गमणि (पा, ला)। 9. उक्कुट्ठी (ता, ला)। 10. डवणं (ला)।