________________ 162 जीतकल्प सभाष्य 1536. दुविध ‘विराधण उसिणे', छड्डण हाणी य भाणभेदो य। अच्चुसिणातों ण घेप्पति, जंतोलित्तेस जतणा तु॥ 1537. वाउक्खित्ताणंतर, पप्पडिगादी तु होति णातव्वा / वत्थि-दतिपूरितोवरि, पतिट्ठित परंपरं होति // 1538. हरितादि अणंतर पूवितादि पारंपरे पिहुडमादी। गोणादिपिट्ठ पूवादणंतरे भरगकुतिगितरं // 1539. सव्वं ण कप्पएतं, णिक्खित्त समासतो समक्खातं / पुढवादीणं एत्तो, आवत्ती दाण वोच्छामि // 1540. पुढवादी जाव तसे, अणंतवणकाय मोत्तु णिक्खित्ते / संति अणंतर . लहुगा, परंपरे होति मासलहुं // 1541. चतुलहुगे आयाम, मासलहू दाण होति पुरिमखु / एती सच्चित्तम्मी, भणितं मीसे अतो वोच्छं / / 1542. एतेसु चेव पुढवादिएसु मीसे अणंतरे लहुगो। होति परंपर' पणगं, दाणं एत्तो तु वोच्छामि / / 1543. लघुमासे पुरिमटुं, पणगे पुण दाण होति पिव्विगतिं / वणकायमणंतेसुं, आवत्ती दाण वोच्छामि। 1544 वणकायअणंतेसुं, णिक्खित्त अणंतरे तु चतुगुरुगा। होति परंपरि गुरुगो, दाणं तु अतो तु वोच्छामि // 1545. चतुगुरुगे तु चउत्थं, गुरुमासे दाणमेगभत्तं तु। आवत्ती दाणं पि य, पिहितम्मि अतो उ वोच्छामि / / 1546. आवत्ती दाणे वा, पुढवादीणिक्खिवंत भणितं तु / एत्तो समासतो च्चिय, पिहितद्दारं पवक्खामि // 1. “हणा उसिणो (पा, ला)। 2. तु. पिनि 254 / 3. "दिपट्ठ (ता, ब, ला)। 4. जाण (पा, ला)। 5. परे (पा, ला)। 6. व्व (ला)। 7. “तदारं (पा, ब)। 8. हस्तप्रतियों में गा. 1545 के बाद पिहिताणंता (1547) गाथा मिलती है लेकिन विषय की दृष्टि से 'आवत्ती दाणे वा' गाथा 1546 की होनी चाहिए क्योंकि ग्रंथकार पिहितद्वार की व्याख्या का संकल्प प्रस्तुत कर रहे हैं उसके बाद ही पिहिताणंता.....गाथा होनी चाहिए। .