________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 161 1525. अहव ण' सचित्तमीसो, यो एगओ एगओ य अच्चित्तो। _ 'एत्थं चतुभंगो तू', 'तत्थाऽऽदितिगे" कहा णत्थि॥ 1526. जं पुण अचित्तदव्वं, णिक्खिप्पति चेतणेसु कायेसु / तहिं मग्गणा तु इणमो, अणंतर परंपरा होति / 1527. चित्तपुढविइ अणंतर, ओगाहिमगाइ होति निक्खित्तं / होती परंपरं पुण, पिहडगतं जं तु पुढविठितं // 1528. उदगमणंतर णवणीतमादि पारंपरं तु णावादी। ते उ अणंतर पारंपरे य दुयगा इमे सत्त // 1529. विज्झातमुम्मुरिंगालमेव अप्पत्त- पत्त-समजाले। वोलीणे सत्तदुगा, 'एते तु अणंतर परे य"॥ 1530. विज्झाउ त्ति ण दीसति, 'अग्गी दीसति'१० य इंधणे छूढे। __ छारुम्मीसा पिंगल, अगणिकणा मुम्मुरो होति // 1531. णिज्जाला हिलिहलया२, इंगाला ते भवे मुणेतव्वा। . होति चउत्थो भंगो, ते 'जालाऽपत्तपिहडं'१३ तु॥ 1532. पंचम पत्ता पिहुडं, छ?म्मि य होति कण्णसमजाला। सत्तमगे समतीता, अणंतरा होंति सत्तसु वी॥ 1533. पारंपर पिहुडादिसु, अगणीघट्टादि तत्थ दोसा तु। भयणा तु जंतचुल्लिसु, इणमो तु तहिं मुणेतव्वा / / 1534. पासोलित्त कडाहे, परिसाडी" णत्थि तं पि य विसालं। सो वि य अचिरच्छूढो, उच्छुरसो णातिउसिणो य५ // 1535. गहणमघट्टित कण्णे, घट्टित छारादिपडण अग्गिवहो। उसिणोदगस्स गुलरसपरिणामित गहणऽणच्चुसिणो॥ . 1. णेति वाक्यालंकारे (पिनिमटी)। 2. उ (पिनि 251/1) / 3. एत्थ तु चउक्कभंगो (पिनि)। 4. “दिदुए (ता, पा, ब, ला)। 5. मीसेसु (पिनि 251/2) / 6. अणंत (पा, ला)। 7. पिहुड (ब)। 8. “पर (पा)। 9. जंतोलित्ते य जतणाए (पिनि 252) / 10. x (ला)। 11. पिनि (252/1) में इसके उत्तरार्ध में पाठभेद है आपिंगलमगणिकणा, मुम्मुर निज्जाल इंगाला। 12. हिलहिलया (ब)। 13. "पियडं (ता), "पिहुडं (ब)। 14. पडिसाडी (पा, ला, ब)। 15. पिनि 253 /