________________ 150 जीतकल्प सभाष्य 1405. रायगिहे य कयाई, णिम्महिलं णाडग' णडाऽगच्छी। ताय' विरहम्मि मत्ता, उवरिगिहे दो वि पासुत्ता // 1406. वाघातेण 'पविट्ठो, दिट्ट विचेला विरागमावण्णो / __आयरियगुरुसमीवं, पट्ठित दिट्ठो णडेणं च // 1407. इंगितणाते धूया, खरंट पेसियय जीवणं देहि। देमि त्ति रट्ठपालं, णाडग णच्चीय कुसुमपुरे // 1408. कडगादिअत्थदाणं, बहुपडितं नच्चगम्मि णच्चंते। भरहो य वणादीया, भरहिड्डी तत्थ य णिबद्धा / 1409. इक्खागवंस भरहो, आदसघरे य केवलालोओ। ___हत्थे गहितो मा कुण, किं भरहों णियत्त? पच्चाह' // 1410. ण हु तं पऽक्खउ एवं, वेलंबो होति जइ णियत्तामि। पंच सता तेण समं, पव्वइता नाडगे डहणं // 1411. एमादि मायपिंडो, ण कप्पती णवरि कारणे कप्पे। गेलण्ण-खमग पाहुण, थेरादद्वेवमादीसु॥ 1412. मायापिंडो भणितो, एत्तो वोच्छामि लोभपिंडं तु। सो कोहपिंडमादिसु, सव्वत्थऽणुपाति अहव इमो॥ 1413. लब्भंतं पि ण गिण्हति", अण्णं२ अमुगं ति अज्ज घेच्छामि। भद्दरसं ति व काउं, गिण्हति. खद्धं सिणिद्धादी / 1414. तत्थोदाहरणमिणं, चंपाएँ छणम्मि को वि खमगो तु। गेण्हति अभिग्गहं तू, सीहेसरमोदगे घेच्छं५ // 1. 4 (पा)। १०.पिनि (219/14) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस 2. ताव (ता, मु)। प्रकार है३. पिनि 219/12 / हारादिखिवण गमणं, उवसग्ग न सो नियत्तो त्ति। 4. नियत्तो दिस्स (पिनि 219/13) / 11. गिण्हेति (ला)। 5. “गसंबोधी (पिनि)। 12. अण्णे (पा)। 6. वा (ला), पिनि में गाथा के उत्तरार्ध में पाठभेद है। 13. लब्भामो (पिनि 220) / 7. देहिं (ब)। 14. णिसिद्धादी (ता)। 8. तत्थगम्मि (पा, ला)। 15. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 46 / 9. केवलं लोओ (ता, पा, ब, ला)।