________________ . 148 जीतकल्प संभाष्य 1382. एतेण मज्झ भावो, विद्धो लोगे पणायहज्जम्मि। एक्केक्के पुव्वुत्ता, भद्दग-पंतादिया. दोसा॥ 1383. दाणं ण होति अफलं, 'पत्तमपत्ते य'३ सण्णिजुज्जंतं। 'ईय विभणिते" दोसा, पसंसिमो' किं पुण अपत्ते ? / / 1384. वणिमगपिंडो भणितो, एत्तो वोच्छं तिगिच्छपिंडं तु। सा दुविधा तु तिगिच्छा, सुहुमा तह बादरा चेव // 1385 सुहुमाए मासलहुँ', आवत्ती दाण होति पुरिमड़े। बादरतेगिच्छाए, चउलहुगा दाणमायाम॥ 1386. भिक्खादिगतं संतं, पुच्छति रोगी तु ओसधं किंची। . भणती किमहं वेज्जो?, पढमतिगिच्छा भवे एसा॥ 1387. वेज्जो त्ति पुच्छितव्वो, अत्थावत्तीय सूइतं. एतं / अबुहाण . बोहणं वा, अयाणमाणाण कतमेतं // 1388. 'बेति व एरिस दुक्खं, अमुगेणं ओसहेण 90 पउणं मे। सहसुप्पइयं च रुयं, वारेमो अट्ठमादीहिं॥ 1389. एसा बितिय तिगिच्छा, दो वेयाओ तु सुहुमतेगिच्छं। बादरतेगिच्छं पुण, सयमेव करेति वेज्जत्तं // 1390. संसोधण संसमणं, णिदाणपरिवज्जणं च जं जत्थ। आगंतुधातुखोभे, व आमए कुणति किरियं तु // 1391. अस्संजयतेगिच्छे, कीरंते तह य सुहुमकरणम्मि। तहियं तु अणेगविधा, दोसा इणमो पसज्जंति॥ 1392. अस्संजमजोगाणं, पसंधणं१२ कायघात अयगोलो। दुब्बलवग्घाहरणं९३, अच्चुदए गिण्हणुड्डाहो" // 1. पणामह' (मु, पिनि)। 2. पंताइणो (पिनि 211, नि 4428) / 3. “तेसु (पिनि 213) / 4. इय वि भणिते वि (पिनि, मु)। 5. पसंसतो (पिनि, नि 4430) / 6. अपत्तं (नि)। 7. लहु (ला)। 8. तीइ (ला)। 9. सूतियं (पा)। 10. एरिसगं वा दुक्खं, भेसज्जेण अमुगेण (पिनि 214/2, नि 4435) / 11. पिनि 214/3, नि 4436 / 12. पसंजणं (मु, पा)। 13. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 42 / 14. पिनि 215, नि 4437 /