________________ 146 जीतकल्प सभाष्य 1360. कत्तरिपयोयणट्ठा', वत्थू बहुवित्थरेसु 'तह चेव'२। कम्मेसु य सिप्पेसु य, सम्ममसम्मेसु सूइतरा // 1361. सव्वेसु भद्दपंता, नियमा दोसा हवंति विण्णेया। आजीवगपिंडेसो, एत्तो तु वणीमगं वोच्छं / / 1362. किं भणितं वणीमे त्ति, भण्णति वणि जायणम्मि धातू तु। वणिमग पायप्पाणं, वणिमो त्ती भण्णते तम्हा॥ 1363. ते पंचहा वणीमग, जायणवित्ती तु होति बोद्धव्वा। समणा माहण किवणे, अतिही साणे य पंचमगा। 1364. समणे माहण किवणे, अतिही साणे य जाण पंचसु वि। पत्तेगं चतुलहुगा, आवत्ती दाणमायामं // 1365. मयमातिवच्छगं पिव, वणेति आहारमादिलोभेणं / अप्पाण समण-माहण-किमिणा-ऽतिहि-साणभत्तेसु // 1366. निग्गंथ सक्क तावस, गेरुय आजीव पंचहा समणा। तेसि परिवेसणाएँ, लोभेण वणेइ' को अप्पं? // 1367. तच्चण्णियादि दटुं, भुंजते दातु पीतिअणुकूलं। साहु तुमे विप्प! कयं, दाउं जं देसि एतेसिं॥ 1368. भुंजंति चित्तकम्मट्ठित व्व कारुणिय' दाणरुइणो वा। अवि कामगद्दभेसु वि, ण वि णासति किं पुण जतीसु? // 1369. मिच्छत्तथिरीकरणं, उग्गमदोसा 'व ते पुण करेज्जा। चडुकारऽदिण्णदाणा, पच्चत्थिग मा 'पुणो एंतु // 1370. एमेव माहणेसु वि, दिजंतं दिस्स बेति अणुकूलं। दोण्हं भणितं दाणं, समणाणं माहणाणं च // 1. “यणावेक्ख (पिनि 207/4, नि 4416) / 5. वणेज्ज (नि 4420), वणिज्ज (पिनि 209) / 2. एमेव (पिनि, नि)। 6. विप्पयं (ता)। 3. सूतियतरा (ता, पा, ब), सूइय' (ला)। 7. कारुणीय (ला, पा)। 4. पिनि (208/1 तथा नि 4419) में गाथा का उत्तरार्ध 8. नस्सए (पिनि 209/1), णासए (नि 4421) / इस प्रकार है 9. य तेसु वा गच्छे (पिनि 210, नि 4422) / समणेस माहणेस य, किविणाऽतिहिसाणभत्तेसु। १०.पुण एवं तु (पा, ला)।