________________ 144 जीतकल्प सभाष्य 1338. ते य ठित' एगपासे, इतरे पडिता कतं तहिं जुद्धं / सेज्जातरिपति-पुत्ता, जामाता चेव वहिओ उ॥ 1339. बेति जणो केणेयं, कहितं? रोयंति बेति सेज्जतरी। जामाति-पुत्त-पतिमारएण खंतेण मे सिटुं॥ 1340. जम्हा' एते दोसा, दूतित्तं खू ण कप्पती तम्हा। दूतीपिंडे चउलहु, आवत्ती दाणमायामं // 1341. नियमा ‘तिकालविसयम्मि णिमित्ते" छव्विधे भवे दोसा। सज्जं तु वट्टमाणो, आउभए तत्थिमं णातं // 1342. आकंपिया' णिमित्तेण, भोइणी केणई तु लिंगीणं। भोइगचिरगतपुच्छा, केवतिकालेण एज्जाहि? // 1343. कल्लं चिय एति त्ती, इतरी पडिभणति पच्चयो को उ?। तुह गुज्झदेस तिलगो, सुविणादी पच्चए कहए। 1344. तीय कतं आउत्तं, पेसवितो परिजणो य पच्चोणी। इतरो वि अविदितो च्चिय, पविसिस्सं भोइओ चिंते॥ 1345. घरवित्तंतनिमित्तं, दिवो उवणिग्गतो य परिवग्गो। कह तुब्भे णातं? ती, पेसविता भोइणीए तु // 1346. पुट्ठा य दियत्तेणं, तीए' सिटुं सलाहमाणीए। समणो तीय भविस्सं, जाणति तिलगो य णे सिट्ठी // 1347. कोवो वलवागभं, च पुच्छितो पंचपुंडगाहंसु / फालण दिट्ठो जदि णेव तो तुहं अवितह कतेवं // 1348. तम्हा ण वागरेज्जा, णिमित्तपिंडेस वण्णितो तु मए। तीतणिमित्ते चउलहु, आवत्ती दाणमायामं // 1. ट्ठिय (ता, ब, ला)। 6. प्रतियों में 'आदियत्तेणं' पाठ मिलता है लेकिन छंद 2. तु. पिनि 203 / एवं अर्थ की दृष्टि से 'दियत्तेणं' पाठ होना चाहिए। 3. तम्हा (ला)। 7. तीय य (मु, ला)। 4. “सए विणि" (पिनि 204), "विसए ने (नि 4405) / 8. 'डमाहंसु (पिभा 34) / 5. "पिय (पा, ला)। 9. कइ वा (पिभा), कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 41 /