________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 141 1307. अह पुण ण संथरेज्जा, ताहे परिठावणा तु तम्मत्तं / इत्थं चउभंगो तू, सुक्खोल्लणिवायगो इणमो॥ 1308. सुक्खे सुक्खं पडितं, सुक्खे उल्लं तु उल्लें सुक्खं तु। उल्ले उल्लं च तहा, एस चउत्थो भवे भंगो॥ 1309. 'सुक्खे सुक्खं पडितं, पढमगभंगो' विगिंचति सुहं तु"। बितियम्मि दवं छोईं, गालेंति दवं करं दाउं॥ 1310. ततियम्मि करं छोटं, उल्लिंचति' ओदणादि जं तरति। 'चरिमे सव्वविवेगो, दुलभदवे वावि तम्मत्तं // 1311. एव विगिचिंतऽसढो, जेसु पदेसुं तु सुज्झते साधू। * मायावी ण विसुज्झे, तम्हा असढेण होतव्वं // 1312. एवं गवेसणाए, उग्गमदारं समासतो भणितं। * उप्पायणमहुणा तू, समासतो हं पवक्खामि // 1313. सोलस उग्गमदोसे, गिहिणो' तु समुद्विते वियाणाहि। __उप्पादणाएँ दोसे, साहूउ समुट्ठिते जाण // 1314. णामं ठवणा दविए, भावे उप्पादणा मुणेतव्वा। 'दव्वे सचित्तादिविहाण', चित्ते दुपयादि तिविध इमा'१० // 1315. आसूयमादिएहिं", वालचिय-तुरंगबीयमादीसु२२ / सुत-आस-दुमादीणं, उप्पादणया तु सच्चित्ता / / 1. एत्थं (ब)। 2. x (ब)। 3. मभंगो (ब)। 4. सुक्के सुक्कं पडितं, विगिंचिउं होति तं सुहं पढमो . (पिनि 192/3) / 5. उत्तिंपइ (ला)। 6. दुल्लभदवम्मि चरिमे, तत्तियमेत्तं विगिंचंति (पिनि 192/4) / 7. गिहिणा (पा, ला)। 8. जाणं (पा, ब), पिनि 193 / 9. छंद की दृष्टि से 'दव्वे सच्चित्तादी' पाठ होना चाहिए। विहाण शब्द उत्पादना के भेद के लिए संकेत रूप में लिखा गया था, वह मूल पाठ के साथ जुड़ गया। १०.दव्वम्मि होति तिविधा, भावम्मि य सोलसपदा उ (पिनि 194) / ११.प्रतियों में तथा मुद्रित पुस्तक में 'आयासुयमादीहिं' पाठ मिलता है लेकिन हमने यहां मूल में पिण्ड नियुक्ति का पाठ स्वीकृत किया है। 12. 'मादीहिं (पिनि 194/1) /