________________ पाठ-संपादन-जी-३५ 125 1132. 'जह खीरं खीरं चिय", एगटुं एगवंजणं दिटुं। 'एगट्ठ णाणवंजण', दुद्ध पयो वालु खीरं च॥ 1133. णाणट्ठमेगवंजण, गो-महिस-अजादियाण खीरं ति। णाणट्ठ णाणवंजण, घड-पड-कड-सगड-रहमादी // 1134. एवमिहमाहकम्म, आहाकम्मं ति पढमतो भंगो। आह अहेकम्मादी, बितिओ सक्किंद इव भंगो॥ 1135. ततिओ भंगो तू आतकम्ममहकम्म पणगमादी य। आहाकम्म पडुच्चा, नियमा सुण्णो चउत्थो तु // 1136. इंदत्थं जहं सद्दा, पुरंदरादी तु णातिवत्तंति / अह-आह-अत्तकम्मा, तहा अहे णातिवत्तंति॥ 1137. आहाकम्मेण अहे, करेति जं हणति पाणभूताई। जं तं आइयमाणो, परकम्मं अत्तणो कुणति // 1138. एगट्ठितदारमिणं, अहुणा कस्स कडमाहकम्म भवे? भण्णति साहम्मिकडं, सो बारसहा इमो होति // 1139. णामं ठवणा दविए, खेत्ते काले य पवयणे लिंगे। दंसण णाण चरित्ते, अभिग्गहे 'भावणाहिं च // 1140. णामेणं साहम्मी, जाव उ कालेण सव्व बोधव्वा। पवयण-लिंगेणं वा, साहम्मिय एत्थ चउभंगो॥ .1141. पवयणमणुम्मुयंते, दंसणमादी तु भावणा जाव। सव्वत्थ तु चतुभंगा, जोएतव्वा जहाकमसो॥ 1142. एवं लिंगेणं पी, तह दंसणमादिएहिँ चउभंगा / भइएसु उवरिमेसू, हेट्ठिल्लपदं तु छड्डेज्जार // 1. दिटुं खीरं खीरं (पिनि 70/2) / 2. एगटुं बहुनामं (पिनि), एगट्ठा णा' (ब)। 3. पीलु (पिनि)। 4. पिनि (70/3) में इस गाथा के स्थान पर निम्न गाथा मिलती हैगो-महिसि-अजाखीरं, नाणटुं एगवंजणं णेयं। घड-पड-कड-सगड-रहा, होति पिहत्थं पिहं नामं॥ 5. वच्चंति (ता)। 6. तह (ब)। 7. आतिय (ता, पा, ब)। 8. पिनि 71 / 9. “णाओ य (पिनि 73) / 10. पिनि (73/20) में इस गाथा का पूर्वार्द्ध इस प्रकार है एमेव य लिंगेणं, दंसणमादी उ होति भंगा उ। 11. वज्जेज्जा (पिनि)।