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________________ 124 जीतकल्प सभाष्य 1121. परकम्ममत्तकम्मीकरेति' तं जो उ गिहिउं भुजे। ... 'चोदेति परक्किरिया", कहण्णु अण्णत्थ संकमति? // 1122. भण्णति परप्पउत्तं, जह विसमइयं तु मारगं होति। तह परकडे वि बंधो, परिणामवसेण जीतस्स॥ 1123. बेती परकडभोयिण, तो तुब्भ वि एव होति बंधो तु। जह अण्णत्थ पउत्ते, कूडे जो पडति सो बज्झे // 1124. गुरुराह जो पमत्तो, जो य अदक्खो स बज्झते तत्थ। अपमत्तो ण वि बज्झति, तहेव दक्खे य जो होति // 1125. इय जो उ अप्पमत्तो, मण-वाया-कायजोगकरणेहिं / सो तु ण बज्झति णियमा, बज्झति इतरो परकडे वि॥ 1126. कामं सयं न कुव्वति, जाणंतो पुण तहावि तग्गाही। वड्डेति . तप्पसंगं, अगिण्हमाणो उ वारेति' / / 1127. तम्हा उ परकडम्मि वि, अत्तीकरणं तु होतऽसुद्धेहिं। मणमादीहि कहं पुण, अत्तिकरे? भण्णति इमेहिं // 1128. पडिसेवण पडिसुणणा, 'संवासऽणुमोदणा" 'चउण्हं पि" / एतेहिं पगारेहिं, अत्तिकरे तत्थिमे णाया' / 1129. पडिसेवणाएँ तेणा, पडिसुणणाए य रायपुत्तो तु। संवासम्मि य पल्ली, अणुमोदण रायट्ठो उ॥ 1130. आहाकम्मियणामा, एते चउरो समासतो भणिता। एगट्ठिताणि अहुणा, वोच्छामि समासतो चेव॥ 1131. एगट्ठ एगवंजण, एगटुं९२ णाणवंजणं चेव। णाण? एगवंजण, णाणट्ठा णाणवंजणया // 1. "म्म अत्त” (पिनि 67/2) / 2. व (पा)। 3. तत्थ भवे परकिरिया (पिनि)। 4. “करभो (पा)। 5. तु. पिनि 67/3 / 6. पिनि 67/5 / 7. “स अणु (ब)। 8. य चउरो वि (पिनि 69) / 9. पिनि में गाथा के उत्तरार्ध में पाठ-भेद है। 10. "दणे (ब)। 11. य (पिनि 68/6), कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 29-32 / 12. एगटे (ला)। 13. वंजणा नाणा (पिनि 70/1) /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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