________________ पाठ-संपादन-जी-९,१० 101 889. दस एतस्स य मज्झ य, पुच्छितों परियाग बेति तु छलेणं। 'मज्झ नव त्ति य वंदितें', भणाति बे पंचगा दस उ॥ 890. वट्टति तु समुद्देसो, किं अच्छह कत्थ एसरे गगणम्मि। 'वर्ल्डति संखडीओ", घरेसु नणु आउखंडणया' / / खुड्डग जणणी उ मुया, परुण्णों जियइ त्ति एव भणितम्मि। माइत्ता सव्वजिया, भविंसु तेणेस माता ते॥ ओसण्णे दट्टणं, दिट्ठा परिहारिग त्ति लहु कहणे / कत्थुज्जाणे गुरुगो, 'अदिट्ठ दिढे य" लहु-गुरुगा। छल्लहुगा उ नियत्ते, आलोएंतम्मि छग्गुरू होंति। परिहरमाणा वि कहं, अप्परिहारी भवे छेदो // 894. खाणुगमादी मूलं, सव्वे तुब्भेगो हं ति अणवट्ठो। सव्वे उ बाहिरा पवयणस्स तुब्भे त्ति पारंची // 895. भणइ य दिट्ठ णियट्टे, आलोयाम ति घोडगमुहीउ। * "किमणुस्सा सव्वेगो'११, सव्वे बाहिं पवयणस्स / / 896. मासो लहुगो गुरुगो, चउरो मासा हवंति लहु-गुरुगा। छम्मासा लहु-गुरुगा, छेदो मूलं तह दुगं च२ // 897. गच्छसि ण ताव गच्छं, 'तक्खण वच्चंत 13 पुच्छितो भणति। वेला 'ताव ण'१४ जायति, परलोगं वावि मोक्खं वा। 898. 'कतरि दिसिं१५ गमिस्ससि?, पुव्वं अवरं गतो भणति पुट्ठो। किं वा ण होति पुव्वा, इमा दिसा अवरगामस्स? // 1. मम नव पवंदियम्मिं (बृ६०७३)। २.नि 305 / 3. एह (नि 306) / 4. वट्टइ संखडी उ (ता,ब)। ५.बृ६०७४। 6. ते (बृ६०७५, नि 307) / 7. करणे (ब)। ८.वयंतऽदिडेसु (बृ६०७६), दिद्वेसु (नि 308) / ९.नि 309, बृ६०७७। १०.नि 310, तु.बृ 6078, इस गाथा के बाद बृ (6079) में निम्न गाथा अतिरिक्त मिलती है किं छागलेण जंपह, किं मं होप्पेह एवऽजाणंता। बहुएहिँ को विरोहो, सलभेहि व नागपोतस्स // 11. किं मणु' (नि 311), माणुस सव्वे एगे (बृ 6080) / 12. बृ६०८१, नि 312 / / 13. किं खुण जासि त्ति (बृ 6084, नि 313) / 14. ण ताव (बृ, नि)। 15. दिसं (बृ 6085), कतरं दिसं (नि 314) /