________________ 100 जीतकल्प सभाष्य 879. विणयब्भंगो' एसो, ओहेण समासतो समक्खातो। . इच्छादी दसहा तू, अकरणेणमो तुरे वोच्छामि // 880. इच्छा-मिच्छा-तहक्कारो, आवसिया य णिसीहिया। आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणारे // 881. उवसंपया य काले, इच्छादिअकरणया तु दसहेसा। ___ लहुसमुसावादि त्ती, एत्तो उ समासतो वोच्छं / 882. पयला उल्ले मरुगे, पच्चक्खाणे य गमण-परियाए। समुद्देस-संखडीओं, खुड्डुग-परिहारिय मुहीउ // 883. अवस्सगमणं दिसासु', एगकुले चेव एगदव्वे य। एमादी तु पदेहिं, मुसं तु लहुसं वए साहू // पयलासि किं दिवा? ण पयलामि लहु बितिय णिण्हवे गुरुगो। अण्णद्दाविय० णिण्हवे, लहुगा गुरुगा बहुतराणं // णिण्हवणे णिण्हवणे, पच्छित्तं वड्डती तु" जा सपदं / लहु-गुरुमासो सुहुमो, लहुगादी बादरो होति२ // 886. किं 'वच्चसि वासंते?, ण गच्छे 13 णणु वासबिंदवो एते। भुंजंति णीह मरुगा, कह? ति णणु सव्वगेहेसु" // भुंजसु५ पच्चक्खाणं१६, महं ति तक्खण प|जितो पुट्ठो। किं च ण मे पंचविधा, पच्चक्खाता अविरतीओ? // 888. वच्चसि? णाहं वच्चे, तक्खण वच्चंत पुच्छितो भणति। सिद्धतं ण वि जाणह", णणु गम्मति गम्ममाणं तु? // 885. 1. “य भंगो (ता)। 9. दुच्च (बृ 6068), दोच्च (नि 300) / 2. तू (ब)। 10. 'दाइत (ब)। ३.गाथा में अनुष्टुप् छंद का प्रयोग हुआ है,आवनि 436/1 / 11. य (बृ 6069), ऊ (ब, मु)। 4. खडी (पा)। १२.नि 301 / ५.बृ 6066, नि 298,882 / 13. नीसि वासमाणे ण णीमि (66070) / 6. अवस' (पा, ता, ब, मु)। 14. गेहेहिं (नि 302) / 7. दिसासू (ला, मु), दिस्सासू (नि 299) / 15. भुंजंसु (ता, पा, ब, ला)। 8. (बृ६०६७ और नि 883) में इस गाथा का उत्तरार्ध 16. खातं (नि 303, बृ)। इस प्रकार है 17. रई उ (बृ६०७१)। पडियाखित्ता गमणं, पडियाखित्ता य भंजणयं। 18. जाणसि (नि 304,66072) /