________________ पाठ-संपादन-जी-१ वेयावच्चकरो वा, सीसो वा देसहिंडगो वा वि। दुम्मेहत्ता ण तरति, अवधारेउं बहू जो तु॥ 673. तस्स तु उद्धरिऊणं, अत्थपदाइं तु देंति आयरिया। जेहिं करेतिर कज्ज, आधारेंतो तु सो देसं // 674. धारणववहारो 'खलु, जहक्कमं५ वण्णितो समासेणं। जीतेणं ववहारं, सुण वच्छ! जहक्कम वोच्छं / 675. वत्तणुवत्तपवत्तो, बहुसो आसेवितो महाणेणं / एसो तु जीतकप्पो, पंचमगो होति ववहारो॥ 676. वत्तो णामं एक्कसि, अणुवत्तो जो पुणो बितियवारे। ततियव्वारपवत्तो, परिग्गिहीतो महाणेणं / / 677. बहुसो बहुस्सुतेहिं, जो वत्तो ण य णिवारितो होति। .. वत्तऽणुवत्तपमाणं, जीतेण कतं हवति एतं // 678. जो आगमे य सुत्ते, या सुण्णतो आण-धारणाए य। सो ववहारं 'जीतेण, कुणति 10 वत्ताणुवत्तेणं // 679. अमुगो१२ अमुगत्थकतो, जह अमुगस्स अमुगेण ववहारो। अमुगत्थ वि य तह कओ, अमुगो अमुगेण ववहारो१२ // 680. तं 'चेवऽणुकज्जंतो', ववहारविधिं पयुंजति जहुत्तं। जीतेण एस भणितो, ववहारो धीरपुरिसेहिं / / 681. धीरपुरिसपण्णत्तो, पंचमगो आगमो विदुपसत्थो। पियधम्मऽवज्जभीरू, पुरिसज्जाताणुचिण्णो य५ // १.व्य 4518 / 2. करेहि (ला, ब, मु)। 3. आराहिंतो (पा, ला)। 4. देसो (व्य 4519) / 5. सो अधक्कम (व्य 4520) / 6. अणुवत्तिओ (व्य 4521) / ७.व्य 4522 / ८.व्य 4542 / 9. या (ब)। 10. जीतेणं कुणती (मु)। ११.व्य 4533 / १२.मु के स्थान पर पा प्रति में सर्वत्र सु पाठ है, जैसे असुतो। 13. व्य 4534 / 14. "णुमज्जंते (व्य 4535) / १५.व्य 4536 /