________________ जीतकल्प सभाष्य 502. 'लद्धो व विसेणं तू', विसूइगा वा से उद्विता होज्जा। आतंको वा कोई, खयमादी उट्ठिओ होज्जा // 503. तिणि तु वारा किरिया, तस्स 'कता ण वि य उवसमो जातो"। जह वोमें कोसलेणं, सण्णीणं पंच उ सयाई / 504. सण्णीण' रुद्धाई, अहयं भत्तं तु तुब्भ दाहामि। लाभंतरं च णाउं, लुद्धेणं 'विक्कियं धण्णं॥ 505. तो गाउ वित्तिछेदं, ऊसासणिरोहमादिणि कताणि। अणहीयासे तेहिं, 'खुहवेदण ओमें साहूहिं '10 // 506. एवं ता कोसलगे, अण्णम्मि वि ओमें होज्ज एमेव।। सहसा छिण्णद्धाणे, असिवग्गहिता व कुज्जाहि // 507. अभिघातो वा विज्जू, गिरिभित्ती कोणगादि वा होज्जा। संबद्ध हत्थ-पादादओ व वारण होजाहि२ // 508. एतेहि कारणेहिं, वाघातिममरण होति णातव्वं / परिकम्ममकाऊणं, पच्चक्खाई ततो भत्तं३ // 509. अह पुण" जदि होज्जाही, पंडितमरणं तु काउ असमत्थो। ऊसासगद्धपटुं, रज्जुग्गहणं व कुज्जाहि // 510. अणुपुव्विविहारीणं, उस्सग्गणिवाइताण जा सोधी। विहरंतए ण सोधी, भणिता 'आहारलोवा या'५ // 511. एसा पच्चक्खाणे, आय परे भणित णिज्जवाण विही। इंगिणि-पाओवगमे, वोच्छामी आयणिज्जवणं // १.विसेण लद्धो होज्जा (व्य 4384) / 2. विसूयिया (पा, ब)। 3. होज्ज (ला)। 4. वी (पा, ब)। 5. कय हवेज्ज नो य उवसंतो (व्य 4385) / 6. ओमे (मु)। 7. साहूणं (व्य 4386, ब)। 8. तुज्झ (व्य)। 9. धण्णविक्कीयं (व्य)। 10. वेदण साधूहि ओमम्मि (व्य 4387) / 11. कुज्जाहिं (ला, मु), कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं.६। 12. व्य 4388 / 13.508 और 509 गाथा के स्थान पर व्य (4389) में निम्न गाथा है एतेहि कारणेहिं, पंडितमरणं तु काउ असमत्थो। ऊसासगद्धपटुं, रज्जुग्गहणं व कुज्जाही॥ 14. वा (ब)। 15. लोवेण (व्य 4390) / 16. गाथाओं के क्रम में व्य में यह गाथा नहीं है। (पा