________________ विषय-सूची 1. प्रवचन की व्याख्या। 31. पुद्गल की अपेक्षा अनंत प्रकृतियां। प्रवचन का निरुक्त। 32. अवधिज्ञान के दो भेद-भवप्रत्ययिक और प्रवचन की परिभाषा। क्षायोपशमिक। दशविध प्रायश्चित्त के वर्णन की प्रतिज्ञा। 33. भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान में हानि-वृद्धि नहीं। प्रायश्चित्त का निरुक्त। | 34. गुणप्रत्ययिक अवधि क्षयोपशम जन्य। निर्विगय आदि प्रायश्चित्त-दान तथा संक्षेप | 35. अवधिज्ञान का विषय अरूपी द्रव्य नहीं। शब्द के एकार्थक। 36. अवधिज्ञान की सीमा। जीतव्यवहार के नाम का ही उल्लेख क्यों? | 37, 38. अवधिज्ञान के छह भेद। पंचविध व्यवहार की प्ररूपणा। 39-42. अंतगत अवधि के त्रिविध भेद एवं उनकी आगम व्यवहार के दो भेद-प्रत्यक्ष और | उपमाएं। परोक्ष। 43. मध्यगत अवधि की उपमा। 10. प्रत्यक्ष आगम व्यवहार के द्विविध भेद। / 44, 45. मध्यगत और अंतगत अवधिज्ञान में भेद। 11. प्रत्यक्ष शब्द का निरुक्त। 46-49, अनानुगामिक अवधि के कथन की प्रतिज्ञा 12, 13. अक्ष शब्द का निरुक्त। एवं उसकी उपमा। 14. . प्रत्यक्ष के संदर्भ में वैशेषिक दर्शन की | 50-61. वर्धमान अवधि का स्वरूप-कथन। .. मान्यता का निरसन। 62. हीयमान अवधि का स्वरूप-कथन / 15,16. जीव विषय का ग्राहक है, इंद्रियां नहीं। | 63, 64. प्रतिपाती अवधिज्ञान का स्वरूप-कथन / 17-19. लिंग के एकार्थक तथा लिंग द्वारा इंद्रियों | 65. अप्रतिपाती अवधिज्ञान का स्वरूप-कथन। - को ज्ञान। ६६-७३.अवधिज्ञान के भेद-प्रभेद। 20-22. इंद्रिय प्रत्यक्ष से व्यवहार। 74-88. मनः पर्यव ज्ञान का स्वरूप-कथन एवं 23. नोइंद्रिय प्रत्यक्ष व्यवहार के तीन भेद। | भेद-प्रभेद। 24, २५.अवधिज्ञान आदि का संक्षिप्त-वर्णन करने | 89. मनःपर्यव ज्ञानी व्यवहार करने के योग्य। की प्रतिज्ञा। 90-108. केवलज्ञान का स्वरूप-कथन / 26. अवधिज्ञान की असंख्य प्रकृतियां। / 109. प्रत्यक्ष आगम-व्यवहारी के दो भेद। 27-30. अवधिज्ञान की असंख्य प्रकृतियां क्यों? | 110. आगम व्यवहारी कौन? आचार्य का समाधान। | 111-13. परोक्ष आगम व्यवहारी का वर्णन /