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________________ जीतकल्प सभाष्य इनमें आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्यों का उल्लेख मिलता है-१. मूलभाष्य 2. भाष्य 3. विशेषावश्यक भाष्य। मूलभाष्य एवं भाष्य की अनेक गाथाएं विशेषावश्यक भाष्य में मिलती हैं। इसी प्रकार बृहत्कल्प पर भी दो भाष्य लिखे गए-लघुभाष्य एवं बृहद्भाष्य। वर्तमान में छह खंडों में प्रकाशित बृहत्कल्पभाष्य लघुभाष्य है। बृहद्भाष्य अभी प्रकाशित नहीं हुआ है। अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई विद्या मंदिर में रूपेन्द्र पगारिया बृहत्कल्प बृहद्भाष्य के सम्पादन का कार्य कर रहे हैं। मुनि पुण्यविजयजी के अनुसार व्यवहार और निशीथ पर भी बृहद्भाष्य लिखे गए थे लेकिन आज वे अनुपलब्ध हैं। यह अनुसंधान का विषय है कि तीन छेदसूत्रों पर बृहद्भाष्य लिखे गए फिर दशाश्रुतस्कन्ध पर क्यों नहीं लिखा गया, जबकि नियुक्तियां चारों छेदसूत्रों पर मिलती हैं। संभव है इस पर भी भाष्य लिखा गया हो लेकिन आज वह उपलब्ध नहीं है। दश भाष्यों में बृहत्कल्प, निशीथ और व्यवहार के ऊपर बृहत्काय भाष्य मिलते हैं। जीतकल्प, पंचकल्प और आवश्यक (विशेषावश्यक भाष्य) पर मध्यम, ओघनियुक्ति पर अल्प तथा दशवैकालिक, उत्तराध्ययन और पिंडनियुक्ति पर अत्यल्प परिमाण में भाष्य लिखे गए हैं। इन भाष्यों की गाथा-संख्या इस प्रकार है१. बृहत्कल्पभाष्य 5. पंचकल्पभाष्य . 2666 2. निशीथ भाष्य 6703 6. जीतकल्प भाष्य 26082 3. व्यवहार भाष्य 4694 7. ओघनियुक्तिभाष्य , 322 4. विशेषावश्यक भाष्य 3603 8. दशवकालिक भाष्य 822 * मूल भाष्य 253 9. उत्तराध्ययन भाष्य 34 10. पिंडनियुक्तिभाष्य 375 उपर्युक्त दश भाष्यों में निशीथ और जीतकल्प पर लिखे गए भाष्य मौलिक रचना के साथ संकलनप्रधान अधिक हैं क्योंकि इनमें अन्य भाष्यों एवं नियुक्तियों की अनेक गाथाएं संकलित हैं। जीतकल्प भाष्य में तो जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण स्पष्ट कहते हैं कि कल्प, व्यवहार और निशीथ उदधि के 6490 १.विशेषावश्यक भाष्य पूरे आवश्यक सूत्र पर न होकर केवल और भी कुछ गाथाओं के भाष्यगत होने के तर्क प्रस्तुत सामायिक आवश्यक की व्याख्या प्रस्तुत करता है। 2. प्रकाशित जीतकल्प भाष्य में 2606 गाथाएं हैं लेकिन 4. नियुक्ति पंचक में इसके अतिरिक्त कुछ और गाथाओं को सभी हस्तप्रतियों में 2608 गाथाएं मिलती हैं। भी सतर्क और सटिप्पण भाष्यगाथा सिद्ध किया गया है। 3. प्रकाशित दशवैकालिक हारिभद्रीय टीका में भाष्य की 5. मलयगिरि की टीका सहित प्रकाशित पिण्डनियुक्ति में 15 83 गाथाएं हैं लेकिन जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित क्रमांक के बाद 25 का क्रमांक है अतः भाष्य गाथाएं नियुक्ति पंचक में भाष्य और नियुक्ति की गाथाओं का 47 न होकर 37 ही हैं। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित समालोचनात्मक पृथक्करण हुआ है। वहां दशवैकालिक पिण्डनियुक्ति में अनेक नियुक्तिगाथाओं के भाष्यगाथा होने भाष्य की 82 गाथाएं सिद्ध की हैं। इसके अतिरिक्त वहां के तर्क प्रस्तुत किए हैं।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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