________________ व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 155 140 163 * कायोत्सर्ग का प्रयोजन। 136 * परिहारी और अपरिहारी की * व्युत्सर्ग तप और व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त पात्र सम्बन्धी मर्यादा। 153 में अंतर। 138 / . परिहार तप प्रायश्चित्त के विकल्प। 154 * कायोत्सर्ग के लाभ। 138 / * पारिहारिक की संघ-सेवा। 154 तप प्रायश्चित्त 139 | * परिहार तप का झोष-क्षपण। * तप प्रायश्चित्त के प्रकार। * वादी पारिहारिक के प्रायश्चित्त में कमी। 156 * परिहार तप और शुद्ध तप में अन्तर। 140 * पारिहारिक का मार्ग में अवस्थान। * छेद में भी तप प्रायश्चित्त। 141 * परिहार तप प्रायश्चित्त के स्थान / 156 * प्रायश्चित्त के संकेत और तप प्रायश्चित्त। 142 * तप प्रायश्चित्त तथा अनवस्थाप्य * नवविध व्यवहार में तप प्रायश्चित्त। 142 | और पाराञ्चित तप में अन्तर। 157 * जीतव्यवहार के आधार पर तप प्रायश्चित्त 143 * तप प्रायश्चित्त-दान में तरतमता। 157 * चतुर्गुरु-उपवास प्रायश्चित्त के स्थान। 143 छेद प्रायश्चित्त 161 * चतुर्लघु-आयम्बिल के स्थान। 144 * छेद प्रायश्चित्त के प्रकार। 163 * गुरुमास-एकासन के स्थान। 144 | * छेद प्रायश्चित्त के अपराध-स्थान। * लघुमास-पुरिमार्ध के स्थान। 144 * आज्ञाव्यवहार में छेद प्रायश्चित्त का गूढार्थ। 164 * पणग-निर्विगय के स्थान। 145 मूल प्रायश्चित्त * बेला-(दो उपवास) के स्थान। 145 * मूल प्रायश्चित्त के स्थान। * तेला-(तीन उपवास) के स्थान। 145 अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त 166 परिहार तप 146 * अनवस्थाप्य के प्रकार। * परिहार तप की योग्यता। 146 . आशातना अनवस्थाप्य। * परिहार तप वहन का समय। 147 | * प्रतिसेवना अनवस्थाप्य। 167 * परिहार तप प्रायश्चित्त स्वीकार * साधर्मिक स्तैन्य। 167 करने की विधि। 147 * उपधि स्तैन्य। 167 * पारिहारिक को आचार्य द्वारा आश्वासन। 148 * आहार स्तैन्य। 168 * आलाप आदि दश पदों का परिहार। 148 * सचित्त शैक्ष आदि का स्तैन्य। 168 * कल्पस्थित और अनुपारिहारिक का सम्बन्ध। 150 * अन्यधार्मिक स्तैन्य। 169 * ग्लानत्व की स्थिति में परिकर्म। 151 * लिंग प्रविष्ट आहार स्तैन्य। 169 * पारिहारिक की आहार एवं भिक्षा * लिंग प्रविष्ट उपधि स्तैन्य। 170 सम्बन्धी मर्यादा। 152 | *लिंग प्रविष्ट सचित्त स्तैन्य। 170 . . पारिहारिक के प्रति आचार्य की सेवा। 153 | * गृहस्थ स्तैन्य। 170 164 165 166 166