________________ जीतकल्प सभाष्य 111 112 114 116 117 117 118 m 120 121 121 122 * गूढ-पदों में प्रतिसेवना का कथन। 73 * प्रतिक्रमण के एकार्थक। आलोचना का स्वरूप एवं उसका महत्त्व। 74 | * प्रतिक्रमण के निक्षेप। * आलोचना के प्रकार। 76 * प्रतिक्रमण के प्रकार। * ओघ विहार आलोचना। 77 * प्रतिक्रमण किसका ? * विभाग विहार आलोचना। 77 * प्रतिक्रमण, सामायिक और * विहार आलोचना का क्रम। प्रत्याख्यान में अंतर। * उपसम्पद्यमान शिष्य की परीक्षा * प्रतिक्रमण और आलोचना। एवं आलोचना। 79 * प्रतिक्रमण और कल्प। * उपसम्पद्यमान की आलोचना। . 1. प्रतिक्रमण के अपराध-स्थान। * अपराध आलोचना किसके पास? 83 | * प्रतिक्रमण के लाभ। * अपराध आलोचना की विधि। . 84 | तदुभय प्रायश्चित्त * आलोचना करने का क्रम। * तदुभय प्रायश्चित्त के स्थान। * आलोचना के समय द्रव्य, क्षेत्र आदि विवेक प्रायश्चित्त का महत्त्व। | . विवेक प्रायश्चित्त के स्थान। * आलोचना के समय निषद्या एवं * विवेक में औचित्य। कृतिकर्म-विधि। 89 / * विशोधिकोटि और अविशोधि कोटि * साध्वियों की आलोचना किसके पास? का विवेक। * आलोचना के समय परिषद् / 91 | व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त * आलोचना काल में सहवर्ती साधु और * कायोत्सर्ग के प्रकार। साध्वी की अर्हता। * अभिभव कायोत्सर्ग का काल। * आलोचना और माया। | * कायोत्सर्ग कर्ता की अर्हता। * आलोचना-विधि के दोष। * कायोत्सर्ग की विधि। * आलोचनाह की योग्यता। 99 * कायोत्सर्ग के अपवाद। * आलोचक की योग्यता। * कायोत्सर्ग के दोष। * आगमव्यवहारी की स्मारणा विधि। * उच्छ्वास का कालप्रमाण। * आलोचना परसाक्षी से ही क्यों? * प्रतिक्रमण में उच्छ्वास और * आलोचना और आराधना। लोगस्स का प्रमाण। * आलोचना के लाभ। 107 * कायोत्सर्ग के स्थान एवं * आलोचना के अपराध-स्थान। 108 श्वासोच्छ्वास का प्रमाण। प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त 110 * कायोत्सर्ग करने का स्थान। 122 123 124 125 127 WU 127 129 130 130 131 132 103 133 134 135