________________ उत्तर द्वार (79052 यो.1 गाऊ 1532 धनुष साधिक 1532 धनुष साधिक 479052 यो.1 गाऊ पश्चिम जयन्त द्वार द्वार विजय kuhaler TESL 79052 यो.1 गाऊ 1532 धनुष साधिक lt L 'l 75062 द्वार हजार देव, पश्चिम में विजयदेव के सात जम्बूद्वीप के अनिकाधिपति एवं मूल सिंहासन के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में विजय देव चार द्वार के 16 हजार आत्मरक्षक देव-इस अपराजित प्रकार विशाल परिवार का 'विजय' देव आधिपत्य करता हुआ निवास करता है। विजय देव की आयुष्य एक पल्योपम की है। ___ विजय देव की विजया जम्बू द्वीप नाम की राजधानी विजय द्वार के पूर्व में तिङ्के असंख्यात द्वीप . समुद्रों को पार करने के बाद जम्बूद्वीप (यह द्वीप अन्य है) नाम वैजयन्त के द्वीप से 12 हजार योजन आगे जाने पर 12 हजार योजन लम्बी-चौड़ी तथा 37,948 योजन से कुछ अधिक परिधि वाली चित्र क्र.29 है। इसकी प्रत्येक दिशा में 125-125 द्वार है, कुल दक्षिण मिलाकर 500 द्वारों से वह सुशोभित है। राजधानी के चारों दिशाओं में चार विस्तृत वनखण्ड हैं, जैसे-(1) अशोकवन, (2) सप्तवर्ण वन, (3) चम्पकवन, (4) आम्रवन / वनखण्डों के मध्यभाग के प्रसादावतंसको में एक पल्योपम की स्थिति वाले (1) अशोक, (2) सप्तपर्ण, (3) चंपक, (4) आम्र नाम के चार महर्द्धिक देव सपरिवार रहते हैं। - इसी प्रकार वैजयन्त' द्वार मेरूपर्वत के दक्षिण में स्थित है। 4% योजन 'जयन्त' नाम का द्वार मेरूपर्वत के पश्चिम में 'अपराजित द्वार' मेरूपर्वत के उत्तर में 45-45 हजार योजन आगे जाने पर है। ये तीनों द्वार भी विजय द्वार के समान 8 योजन ऊँचे व 4 योजन चौड़े हैं। अपने-अपने नाम के अनुसार ही एक पल्योपम की स्थिति वाले महर्द्धिक देव अपने नामानुरूप राजधानी में भोगोपभोग भोगते हुए विचरण करते हैं। इन तीनों की राजधानियाँ भी इस प्रसिद्ध जम्बूद्वीप में न होकर असंख्य द्वीप-समुद्र पार करने के पश्चात् एक अन्य जंबूद्वीप है, वहाँ पर है। जंबूद्वीप के इन द्वारों में एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर उन्यासी हजार बावन (79,052) योजन और चित्र क्र. 30 : जगती का द्वार प्रमाण देशोन आधा योजन का है। 1गाऊ 4योजन 8 योजन सचित्र जैन गणितानुयोग 35