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________________ गंधमादन पर्वत माल्यवत पर्वत इशानेन्द्र मरू र कोण) एव BEEEEEEEEEEEEEEEHHREMEHELLEHEHELHHHHHHHHH शकेन्द्र 1 (1) भद्रशाल वन-मेरूपर्वत का 1,000 योजन का भाग जो भूमि के अंदर है उसे 'कंद' कहा गया है। पर्वत जैसे ही भूमि के बाहर आया है वहाँ प्रथम भद्रशालवन हैं। इसे मेरूपर्वत की तलहटी भी कहते हैं। यह 'समभूतला पृथ्वी' कहलाती है, क्योंकि लोक का संपूर्ण विभाग-माप यहीं से किया जाता है। यह वन पूर्व-पश्चिम 22-22 हजार योजन लम्बा और उत्तर-दक्षिण में 250-250 योजन चौड़ा है। सोमनस, विद्युत्प्रभ, गंधमादन तथा माल्यवान् नामक चार वक्षस्कार पर्वतों तथा शीता-शीतोदा महानदी के द्वारा यह वन आठ भागों में विभक्त है। भद्रशालवन में चारों दिशाओं में भद्रशाल वन और उसके आठ विभाग 50-50 योजन आगे जाने पर 50 योजन 8 लम्बा, 25 योजन चौड़ा तथा 36 योजन ऊँचा EO उत्तर कुरूक्षेत्र सैंकड़ों स्तम्भों वाला सिद्धायतन है तथा LE चारों विदिशाओं में चार-चार पुष्करणियाँ है। उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) तथा उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण) में चार पुष्करणियों के मध्य 500 योजन ऊँचे और 250 योजन चौड़े 0 4 का महल देवराज ईशानेन्द्र के उत्तम आवास हैं। इसी सीतोदा महानदी 22,000 यो. सीता महानदी 22,000 यो, प्रकार दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) एवं दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में शकेन्द्र महाराज सपरिवार रहते हैं। वे आवास 500 योजन ऊँचे और 250 योजन चौड़े हैं। (चित्र क्रमांक 23) भद्रशालवन में मेरू पर्वत के पास आठ देव कुरू क्षेत्र हस्तिकूट (हाथी के आकार के पर्वत) भी बताये है। इनमें (1) पदमोत्तर, (2) नीलवान्, (3) सुहस्ती, (4) अंजनगिरी ये चित्र क्र.23 चार दिशा हस्तिकूट' है। ये चारों मेरू पर्वत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में है तथा (5) कुमुद, (6) पलाश, (7) अवतंस, (8) रोचनगिरि-ये चार विदिशा हस्तिकूट' कहे गये है। ये नैऋत्य वायव्य, आग्नेय और ईशान कोण में हैं। इनमें अपने-अपने नामानुरूप देवों का आधिपत्य है। (2) नन्दनवन-यह भद्रशालवन के समतल भूमिभाग से 500 योजन ऊपर वलयाकार-कंकण के समान गोल तथा मध्य में खाली है। सब ओर से समान विस्तार की अपेक्षा से 500 योजन का है, मेरूपर्वत को चारों ओर से घेरा हआ है। नंदनवन के बाहर मेरूपर्वत का विस्तार 9954/ योजन है। नंदनवन से बाहर उसकी परिधि कुछ अधिक 32,479 योजन है। नंदनवन के भीतर उसका विस्तार 8944/6 योजन व परिधि 28316/ योजन है। यहाँ भी चारों दिशाओं में सिद्धायतन तथा विदिशाओं में पुष्करणियाँ है। नंदनवन में विभिन्न दिशाओं में नौ कूट हैं, जैसे-(1) नन्दनवनकूट,(2) मन्दरकूट,(3) निषधकूट,(4) हिमवत्कूट, (5) रजतकूट, (6) रूचककूट, (7) सागरचित्रकूट, (8) वज्रकूट तथा (9) बलकूट। बलकूट 1,000 28 Misa Visa MA SO MA SANG सचित्र जैन गणितानुयोग HHHHHHHHHHHHHHHHHHENDEIFIELETELEMEIFIERE का महल सोमनस पर्वत
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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