________________ समभूतला पृथ्वी स्थान REL शुन्य पृथ्वी पिण्ड वाण व्यंतर शून्य पृथ्वी पिण्ड 210 यो. निकाय स्थान: 470 यो. Poo00000 दक्षिण निकाय उत्तरनिकाय.: . 1b0000000 &00o 100 यो. होता है। पूरे जंबूद्वीप को ये देव जल से भर सकते हैं। दिशाकुमार देवों की जंघाएँ व पैर अत्यंत मजबूत व शोभित होते हैं। ये देव अपने पैर की एड़ी द्वारा पूरे जंबूद्वीप को कंपायमान कर सकते हैं। वायुकुमार देव स्थिर, पुष्ट, सुदंर व गोल गालों वाले होते हैं। ये देव संपूर्ण जंबूद्वीप को हवा से प्रकम्पित कर सकते हैं। स्तनित कुमार स्निग्ध अवयवी, गंभीर नाद वाले जातिवंत देव हैं। इन्हें मेघकुमार देवों के नाम से भी जाना जाता है। ये चाहें तो संपूर्ण जंबूद्वीप को मेघ से आच्छादित कर सकते हैं। ___भवनपति देवों के इन्द्र-भवनपति देवों का नेतृत्व करने वाले 20 इन्द्र होते हैं। इन देवों के भवन दक्षिण व उत्तर इन दो दिशाओं में विभाजित होने के कारण दोनों दिशाओं के इन्द्र भिन्न-भिन्न हैं। दक्षिण दिशा के इंद्र को दक्षिणार्ध भवनपति इंद्र व उत्तर दिशा के इंद्र को उत्तरार्ध भवनपति इंद्र कहते हैं। इस तरह 10 इंद्र उत्तरार्ध के व 10 दक्षिणार्ध के मिलकर भवनपति देवों के 20 इंद्र होते हैं। भवनपति देवों के प्रत्येक इन्द्र को 33 त्रायस्त्रिंशक देव, 4 लोकपाल, 4 सपरिवार अग्रमहिषियाँ, 3 परिषद्, 7 सेना, 7 सेनाधिपति होते हैं। उत्तर-दक्षिण के असुरकुमार इन्द्रों को क्रमशः 60,000 और 64,000 सामानिक देव और उससे चार गुणे अधिक आत्मरक्षक देव होते हैं। शेष नवनिकाय 180000 यो. देवेन्द्रों के छह-छह हजार सामानिक देव और उससे चार गुणा आत्मरक्षक देव हैं। नारकी भवनपतियों के भवन-दक्षिणार्ध भवनपति भवनपति इंद्रों के कुल भवन 4 करोड़ 6 लाख तथा उत्तरार्ध वाण व्यंतर भवनपति इंद्रों के 3 करोड़ 66 लाख भवन हैं। अर्थात् के निवास कुल 7,72,00,000 भवन होते हैं। ये सभी भवन बाहर से गोल एवं अंदर से सम चतुष्कोण (चौरस) और तल में पुष्कर कर्णिका के आकार के हैं। ये सभी रत्नमय महाप्रकाश युक्त और समस्त सुख सामग्रियों से परिपूर्ण हैं। इनमें छोटा से छोटा भवन जंबूद्वीप के बराबर है अर्थात् एक लाख योजन का है और सबसे बड़ा भवन असंख्यात द्वीप समुद्रों के बराबर अर्थात् शून्य पिंड 1000 योजन असंख्यात योजन का है। संख्यात योजन के भवन में 'घनोदधि 'घनवात संख्यात देव-देवियों का और असंख्यात योजन के तनुवात भवन में असंख्यात देव-देवियों का निवास है। (चित्र चित्र क्र. 19 : रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रस्तर-अंतर क्रमांक 19) और भवनपति वाणव्यन्तर देवों के आवास शून्य पिंड 100 योजन 1.सीमंतक प्रतर 300 योजन . शून्य पिंड 11583 योजन नरक प्रतर असुर कुमार . . A . . नाग कुमार 4A..ADA.. सुपर्ण कुमार व्यंतर A . विद्युत कुमार . . . . अग्नि कुमार . 8 A . स्थान 9 A . 10A द्वीप कुमार . . A . . A . उदधि कुमार . . A . . A . दिशा कुमार . . A . . पवन कुमार . . स्तनित कुमार . . A . . A . शून्य पिंड 11583] योजन नरक प्रतर 11A 12 A . 13 20 सचित्र जैन गणितानुयोग