________________ अध्याय 2 : अधोलोक समपृथ्वी 10 भवनपति 15 परमाधामी 216 वाणव्यंतर -नरक-1(रत्नप्रभा) (घम्मा) 13 प्रतर 12 अंतर नरक-2 (शर्कराप्रभा) (वंशा) 11 प्रतर 10 अंतर 2. मोटाई1,32,000 नरक-3 (वालुकाप्रभा) (शीला) १प्रतर 8 अंतर 1,28,000 नरक-4 (पंकप्रभा) (अंजना) AR 7 प्रतर 6 अंतर नरक-5 (धूम्रप्रभा) (रिष्टा) 1,20,000 आकाश वायु असंख्य योजन 5 प्रतर 4अंतर 5. मोटाई 1,18,000 नरक-6(तमःप्रभा) (मघा) 3 प्रतर 2 अंतर लोक के तीन भाग हैं-अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक। अधोलोक को पाताललोक या नरकलोक भी कहते हैं। यह मेरूपर्वत के समतल के नीचे 900 योजन की गहराई के बाद गिना जाता है। इसकी ऊँचाई सात राजू, अधोलोक के चौड़ाई नीचे सात राजू सात रज्जू अनंत अलोकाकाश और ऊपर एक राजू | 1. मोटाईहै। इस अधोलोक में | 1,80,000 सात पृथ्वियाँ हैं जो 2. मोटाईउत्तरोत्तर नीचे हैं और | 3. मोटाईएक-दूसरे के मध्य असंख्यात योजन के 4. मोटाईअंतर से स्थित है। 4 इन सात पृथ्वियों के नाम इस प्रकार है1. रत्नप्रभा, 6. मोटाई2. शर्कराप्रभा, 1,16,000 3. बालुकाप्रभा, 7. मोटाई 1,08,000 4. पंकप्रभा, त्रसनाडी 5. धूमप्रभा, 6. तमःप्रभा, अलोक 1 रज्जू चौड़ी - 14 रज्जू ऊँची अलोक 7. महातमःप्रभा। (चित्र क्रमांक 12) अधोलोक (7 राजू ऊँचा) चित्र क्र. 12 - सात नरक पृथ्वियाँ 1. रत्नप्रभा पृथ्वी-रत्नों की प्रधानता होने से इस पृथ्वी को रत्नप्रभा कहते हैं। इस नरक पृथ्वी की ऊँचाई एक राजू और घनाकार विस्तार दस राजू प्रमाण है। इसके तीन काण्ड (हिस्से) हैं। सबसे ऊपर का प्रथम ‘खरकाण्ड' है, जो रत्नप्रचुर है। उसकी मोटाई 16 हजार योजन है, उसके 16 विभाग हैं, प्रत्येक विभाग 1000 योजन मोटे हैं और रत्न, वज्र, वैडूर्य आदि 16 जाति के रत्नों की प्रधानता वाले हैं। उसके नीचे का दूसरा काण्ड 'पंकबहुल' है, जिसकी मोटाई 84 हजार योजन है। उसके नीचे का तीसरा काण्ड 'जलबहुल' है, जिसकी मोटाई 80 हजार योजन है। तीनों काण्डों की मोटाई कुल मिलाकर 1 लाख 80 हजार योजन है। उसमें से ऊपर और नीचे एक-एक हजार योजन छोड़कर बीच में 1 लाख 78 हजार योजन का पोलार है। इसमें तेरह 1 प्रतर नरक-7 (तमःतमःप्रभा) (माघवती) तनवात धनवात आकाश स्थावरनाडी यनीदाधा सचित्र जैन गणितानयोग