________________ आकाश वायु के आधार पर उदधि और उदधि के आधार पर पृथ्वी कैसे ठहर सकती है? इस प्रश्न का स्पष्टीकरण करते हुए कहा पृथ्वी गया है-कोई पुरूष वैज्ञानिक ढंग की बनी थैली को हवा भर कर घनोदधि फुला दे। फिर उसके मुँह को फीते से मजबूत गाँठ देकर बाँध दे घनवायु तथा इस थैली के बीच के भाग को भी बाँध दे। ऐसा करने से थैली पतली वायु में भरे हुए पवन के दो भाग हो जाएँगे, जिससे थैली डुगडुगी जैसी लगेगी। तब थैली का मुँह खोलकर ऊपर के भाग में से हवा निकाल दे और उसकी जगह पानी भरकर फिर थैली का मुँह बंद वायु एवं जल पर स्थित पृथ्वी कर दे और बीच का बन्धन खोल दे। ऐसा करने पर जो पानी थैली चित्र क्र.90 के ऊपरी भाग में भरा गया है, वह ऊपर के भाग में ही रहेगा नीचे नहीं जाएगा, क्योंकि ऊपर के भाग में जो पानी है, उसका आधार थैली के नीचे के भाग की वायु है। जैसे थैली में हवा के आधार पर पानी ऊपर रहता है, वैसे ही वायु के आधार पर उदधि और उदधि के आधार पर पृथ्वी प्रतिष्ठित है। (चित्र क्रमांक 9) ___ सम्पूर्ण लोक के मध्य स्थान-चौदह राजू परिमाण यह लोक सर्वत्र सम नहीं है। कहीं चौड़ा है तो कहीं संकड़ा है। प्रदेशों की हानि-वृद्धि के कारण यह विषम भाग वाला है। किन्तु रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपरी भाग में दो क्षुल्लक प्रतर हैं। वे दोनों सम और सबसे छोटे हैं। इन दोनों प्रतरों में प्रदेशों की हानि-वृद्धि नहीं होती। ऊपर के क्षुल्लक प्रतर से ऊपर की ओर तथा नीचे के क्षुल्लक प्रतर से नीचे की ओर लोक की वृद्धि होती है। इन दोनों प्रतरों की - लम्बाई-चौड़ाई समान एक राजू परिमाण है। इन दो क्षुल्लक प्रतरों में तिर्छालोक का मध्य भाग है। यही आठ रुचक प्रदेश हैं जिनमें से दस दिशाएँ निकली हैं। सम्पूर्ण लोक का मध्यभाग रत्नप्रभा पृथ्वी के आकाश खण्ड के असंख्यातवें भाग का उल्लंघन करने के बाद है। अधोलोक का मध्य भाग चौथी पंकप्रभा पृथ्वी का आधे से अधिक आकाश खंड पार करने के बाद आता है। तथा ऊर्ध्वलोक का मध्यभाग सनत्कुमार एवं माहेन्द्र देवलोक के ऊपर और ब्रह्मदेवलोक के नीचे रिष्ट नामक तीसरे प्रतर में है। (चित्र क्रमांक 10) दिशाओं का निर्णय-जंबूद्वीप चौड़ाई 7 राजूके मेरु पर्वत के बहुसम मध्य भाग में | चित्र क्र. 10 : लोक का घनफल, राजू एवं तीनों लोकों के मध्य स्थान राज सिद्ध शिला - मोटाई 7 राजू अनुत्तर विमान 12% ग्रेवेयक MR. ऊर्ध्वलोक 5 राजू ACA/ANI ऊर्ध्वलोक का मध्य पाँचवें देवलोक का. तीसरा रिष्ट प्रतर. 1 राजू मेरु पर्वत के 8 रुचक प्रदेशों पर 12 तिर्यक लोक का मध्य - मोटाई 7 राजू - ऊँचाई 14 >लोक का मध्य > अधोलोक का मध्य (पंकप्रभा पृथ्वी) अधोलोक - -मोटाई 7 राजू 343 राजू घनाकार सचित्र जैन गणितानुयोग