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________________ सूर्य तथा उसका ग्रह परिवार मिलकर 'सौरमंडल' बनता है। जिसे हम ब्रह्माण्ड' कहते हैं, इसमें अनेक सूर्यमंडल हैं। ऐसे सौरमंडलों की संख्या लगभग10 करोड़ है। हमारा सौरमंडल 'ऐरावत पथ' (Milki Way) नामक ब्रह्माण्ड में है। ऐरावत पथ के चन्द्र रूपी मार्ग के लगभग 2/3 भाग पर एक पीला बिंदु है वही बिंदु सूर्य है, जो अपने ग्रहों को साथ लेकर ऐरावत पथ पर बराबर घूमता है। पूर्व ऐरावत पथ में लगभग 500 करोड़ तारे हैं। इनमें से बहुत से तारे तो दिन में निकलते हैं। अतः सूर्य के प्रकाश में हमें दिखते ही नहीं। तारों के अलावा ऐरावत पथ में गैस और धूल भी अति प्रमाण में है। रात में बहुत से तारों का प्रकाश मिलकर इस गैस और धूल को प्रकाशित करते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व का प्रमाण असंख्य है और आकाश का तो कहीं अंत ही नहीं दिखता। तारों के आकाश में जिस रीति से विभाग है तथा आकाशगंगा में जो तारों का पुंज दिखाई देता है, उससे अनुमान लगता है कि तारामंडल सहित सम्पूर्ण लोक का आकार लेन्स (Lens) जैसा है अर्थात् ऊपर-नीचे का भाग उठा हुआ और मध्य का भाग विस्तृत व गोल है। उसकी परिधि पर आकाशगंगा तथा उठे हुए भाग के मध्य सूर्यमंडल है। उक्त सारा वर्णन वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार यहाँ वर्णित किया है यद्यपि वैज्ञानिक सत्य की खोज में लगनशील है, प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित करने में जुटे हैं, तथापि वे यह दावा नहीं करते कि उन्होंने पूर्ण रूप से सत्य का पता लगा लिया है, वे अन्तिम बिंदु तक जा पहुँचे है, जैसा कि महान् वैज्ञानिक न्यूटन का कथन है-"अभी हम तो किनारे के कंकड़-पत्थर ही बटोर रहे हैं, ज्ञान का महासागर तो हम से अभी बहुत दूर है।" वस्तुतः विज्ञान शोध और प्रयोग के स्तर पर है, बहुत संभव है कि जब विज्ञान की शोध पूर्ण हो जाये तो वे भी महावीर की भाषा बोलने लगे। सचित्र जैन गणितानुयोग 181
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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