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________________ तारों की संख्या असंख्य है। हमें हमारी दृष्टि से तो अधिक से अधिक छठा भाग अर्थात् 6-7 हजार तारे ही दिखाई पड़ते हैं, परंतु जितना शक्तिशाली दूरबीन हो उससे उतने ही अधिक तारों को देखा जा सकता है। वर्तमान में सबसे अधिक शक्तिशाली दूरबीन के द्वारा सम्पर्ण तारों का 20 वाँ भाग देखा गया है अर्थात् 2 अरब से अधिक तारे देखे गये हैं। प्रकाश की न्यूनाधिकता के आधार पर वैज्ञानिकों ने तारों को 20 वर्गों में विभाजित किया है वर्ग संख्या वर्ग 11. वर्ग 16. | 4850 2. संख्या 19 65 200 530 17. 14300 11. | 12.| 13. संख्या 87000 2270000 5700000 13800000 32000000 | वर्ग संख्या 16.171000000 | 17.15000000 18.296000000 560000000 | 20.| 10000000000/ IAw 41000 117000 324000 14. 19. |10. 19. 5. | 1620 | 15.| इनमें पहले, दूसरे और तीसरे वर्ग के तारे अधिक चमकते हैं। आठवें वर्ग तक के तारों को गिनना या देखना असंभव है। किंतु इससे आगे के तारों को दूरबीन से देखा या गिना जा सकता है। जेम्स जीन्स के अनुसार संसार में इतने तारे हैं, जितने अपनी पृथ्वी के सम्पूर्ण समुद्र के किनारों की रेत / अर्थात् असंख्य तारे हैं। सबसे नजदीक का तारा साढ़े चार प्रकाश वर्ष दूर है तो असंख्य तारों की यहाँ से परस्पर की दूरी कितनी अधिक होगी यह अनुमान से ही जाना जा सकता है। ये सभी तारे अति वेग से गति करते हैं। _ नीहारिका-बिखरे हुए गेंहू के समान अनेक तारों के समूह को नीहारिका' कहते हैं। हम अपनी खुली आँखों से एक-दो नीहारिकाएँ देख सकते हैं, वे देखने में तारे जैसी ही होती हैं। किंतु इनका आकार इतना बड़ा है कि हम बीस करोड़ मील व्यास वाले गोलों की लम्बाई-चौड़ाई का अनुमान करें फिर भी उक्त नीहारिका के सामने यह अनुमान तुच्छ ही होगा और ये इतनी दूरी पर हैं कि 1 लाख 86 हजार मील प्रति सैंकिड चलने वाले प्रकाश को वहाँ से पृथ्वी तक पहुँचने में 10 लाख 30 वर्ष तक लग सकते हैं। (तीर्थंकर, भूगोल विशेषांक) दूरबीन से देखने पर कितनी ही नीहारिकाएँ गोल और कितनी ही शंख के चक्र जैसी है। करोड़ों तारों के झुमके से बना यह एक छोटा विश्व है। शोध करने पर सबसे कम नीहारिकाएँ है, तथापि दूरबीन से लगभग 20 लाख चक्राकार नीहारिकाएँ दिखाई दी है। (चित्र क्रं. 111-112) आकाशगंगा-रात्रि में आकाश में एक श्वेत बालू का मार्ग या गंगा जैसी श्वेत चौड़ी धारा नैऋत्य से ईशान तरफ लम्बी (धारा) दिखाई देती है वही 'आकाशगंगा' है। आकाशगंगा' यह तारों का एक समूह है, इसमें सूर्य जैसे लगभग दो खरब तारे हैं। इसका आकार अंडे जैसा या हाथ घड़ी या दो जुड़े हुए तवे जैसा बीच में मोटा और किनारे पर पतला है। इसका व्यास 3 लाख प्रकाश वर्ष और मोटाई 10 हजार प्रकाश वर्ष है। (चित्र क्रमांक 113) ग्रह-ज्योतिर्मंडल में ग्रहों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कुछ ग्रहों की विज्ञान सम्मत जानकारी निम्न कोष्ठक में दी जा रही है 178 सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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