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________________ गये, कितने ही पानी में ही विकास प्राप्त कर मछली बन गये, फिर पृथ्वी पर भी श्वासोछ्वास की क्रिया कर सकने वाले मेंढक आदि प्राणी अनुक्रम से पैदा होते गये, फिर पेट की ताकत से चलने वाले सांप, अजगर आदि पैदा हुए, इनका विकास दो प्रकार से हुआ-(क) अंडे से उत्पन्न होने वाले पक्षी, (ख) स्तनधारीमगरमच्छ, भेड़, बकरी, गाय भैंस घोड़ा आदि। इन स्तनधारी प्राणियों में एक बंदर की जाति भी उत्पन्न हुई, इन बंदरों ने किसी समय आगे के दोनों पाँव ऊँचे कर पीछे के दो पैरों से चलना सीख लिया, बस, इन्हीं में से मनुष्य जाति का विकास होना प्रारंभ हुआ। जीवकोश से मानवविकास तक की प्रत्येक विकास यात्रा में लाखों करोड़ों वर्षों का अंतर माना जाता है। इस विकास क्रम में समय-समय पर उस समय की स्थिति और वायमण्डल के आधार पर विभिन्न प्रकार की जातियों वाले अन्य प्राणी भी उत्पन्न होकर विनाश को प्राप्त होते गये, यह बात इनके अवशेषों से ज्ञात होती है। पृथ्वी के पाँच विभाग-पृथ्वी पर पानी का तिगुना विस्तार है अर्थात् 29 प्रतिशत स्थल जगह और 71 प्रतिशत पानी है। पानी के विभाग से एशिया, यूरोप और अफ्रिका मिलकर एक खंड, उत्तर-दक्षिण अमेरिका द्वितीय खण्ड, आस्ट्रेलिया तीसरा खंड, उत्तरी ध्रुव चौथा और दक्षिणी ध्रुव यह पाँचवा इस प्रकार पृथ्वी पाँच खण्डों में विभक्त है। इसके अतिरिक्त छोटे-बड़े अनेक द्वीप हैं। (चित्र क्रमांक 108) वर्तमान पृथ्वी के पाँच विभाग खण्ड-4 खण्ड -2 खण्ड -1 समुद्र खण्ड -3 समुद्र खण्ड -5 चित्र क्र.108 सचित्र जैन गणितानुयोग 173
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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