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________________ जघन्य परित्त असंख्यात का कल्पित माप निरंतर बढ़ते रहने वाला अनवस्थित पल्य 43 गाऊ12 पार 227 योजन 416 हजार रिधि 3 लाख मूल अनवस्थित पल्य 1 लाख योजन लंबा-चौड़ा 10081 योजन गहरा 18धनुष साधिन दूसरा अनवस्थित पल्य प्रथम पल्य से कई गुना बड़ा अंतिम अनवस्थित पल्य प्रथम पल्य से उत्कृष्ट संख्यात या जघन्य परित्त असंख्यात की संख्या वाले द्वीप या समुद्र जितना बड़ा अनवस्थित पल्य के खाली होने का सूचक शलाका पल्य के खाली होने का सूचक प्रतिशलाका पल्य के खाली होने का सूचक शलाका पल्य 1 लाख योजन लंबा-चौड़ा 10081 योजन गहरा प्रतिशलाका पल्य 1 लाख योजन लंबा-चौड़ा 10081 योजन गहरा महाशलाका पल्य 1लाख योजन लंबा-चौड़ा 10081 योजन गहरा महाशलाका पल्य भरने को प्रतिशलाका भरना होगा और प्रतिशलाका को भरने के लिए अनवस्थित से शलाका और शलाका से प्रतिशलाका भरते रहने की पूर्व विधि का बार-बार अनुसरण करना होगा, अंत में महाशलाका पूर्ण होने पर प्रतिशलाका का, प्रतिशलाका पूर्ण होने पर शलाका और शलाका पूर्ण होने पर अनवस्थित पल्य पूर्ण होगा। वह अंतिम अनवस्थित पल्य सबसे अंत में डाले गये सर्षप के द्वीप-समुद्र जितना बड़ा होगा। चित्र क्र.107 सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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