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________________ कृष्णराजियाँ पृथ्वीरूप परिणाम होने पर भी इनमें ग्राम, नगर, मकान, विमान आदि नहीं हैं। पानी, अग्नि और वनस्पति (बादर) का यहाँ सर्वथा अभाव है तथापि देवों द्वारा मेघ, वर्षा व बिजली आदि संभव है। (चित्र क्र.96) नौ लोकान्तिक देव-ब्रह्मदेवलोक में आठ कृष्णराजियों के आठ अंतरों में आठ विमान और आठों के मध्य में भी एक विमान हैं। इस प्रकार कुल नौ विमानों में लोकान्तिक जाति के देव रहते हैं। वैसे तो ये सभी पाँचवें ब्रह्मेन्द्र के साम्राज्य में ही आते हैं, किन्तु इनकी कुछ विशेषताओं के कारण ये नव लोकान्तिक के नाम से स्वतंत्र पहचाने जाते हैं। इनके स्वामी देव एकाभवावतारी होते हैं अर्थात् शीघ्र ही लोक का अंत करने वाले होने से इन्हें लोकान्तिक कहते हैं अथवा लोक (त्रसनाड़ी) के किनारे पर रहने के कारण भी ये 'लोकान्तिक' कहे जाते हैं। आठकृष्णराजियाँ और नौ लोकान्तिक विमान उत्तर 7. त्रिकोण कृष्णराजि 8. सुप्रतिष्ठाभ 7. शुक्राभ 8. चतुष्कोण कृष्णराजि 5. षट्कोण कृष्णराजि 1. अर्चि 6. सूर्याभ 6. चतुष्कोण कृष्णराजि JUUUUUUUU पश्चिम पूर्व STOTATATATATAINTATr 1. षट्कोण कृष्णराजि 5. चंद्राभ 9.रिष्ट 2. चतुष्कोण कृष्णराजि 3. वैरोचन 2. अर्चिमाली 4. चतुष्कोण कृष्णराजि 4. प्रभंकर 3. त्रिकोण कृष्णराजि दक्षिण RAMAYA-AR सचित्र जैन गणितानुयोग चित्र क्र.96 142 142 |
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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