________________ 72 वनस्पतियों के स्वलेख होता है कि जब एक विष द्वारा हृत्स्पन्दन का अवरोध होता है, दूसरे द्वारा उसको पुनरुज्जीवित किया जा सकता है। यह दोनों के ही एक दूसरे के प्रतिकारक (Artidote) होने का विचित्र उदाहरण है। शालपर्णी में समान प्रतिक्रियाएँ देखकर आश्चर्य हुआ। विषाक्त अम्लों द्वारा अनुशिथिलन में स्पन्दन का अवरोध होता है तथा क्षारीय विषों द्वारा हृत्प्रकुंचन में। अन्त में इन दोनों ही विषों द्वारा किये गये अवरोध को इनकी विरोधी प्रतिक्रिया से नष्ट किया जा सकता है। ___इन प्रयोगों के निष्कर्ष से प्राणी और वनस्पति के स्पन्दन-यंत्र का मूलतः समान होना प्रदर्शित होता है किन्तु फिर भी यह प्रश्न तो रह ही जाता है कि इन स्वतः क्रियाओं का कारण क्या है ? संयोजी श्रृंखला का पता लगाना अब तक हमने केवल एक ही उद्दीपना द्वारा एक ही अनुक्रियात्मक गतिशीलता का परिचय पाया; अब हम देखते हैं कि एक ऐसा पूरा वर्ग है जिसमें अकारण ही गति होती है। क्या दोनों के बीच कोई विराम (Hiatus) है अथवा कोई संयोजी शृंखला है, जिसके आविष्कार द्वारा हमारे लिए इन रहस्यमयी स्वतः गतियों का स्पष्टीकरण सम्भव हो? ऐसी संयोजी शृंखलाएँ मुझे सामान्यपंक्तिपत्र (Biophpytum Sensitivum) और सामान्य कमरख (Averrhoa Carambola) में मिली। पंक्तिपत्र कलकत्ता के आस-पास मिलने वाला एक खरपतवार है। इसकी संवेदनशील पत्तियाँ पर्णवृन्त पर दो पंक्तियों में क्रमबद्ध रूप से सजी रहती हैं और स्फुरण-गति (Twitching) द्वारा ही उद्दीप्त होती हैं। कमरख का वृक्ष बहुत बड़ा होता है। इसकी पत्तियाँ भी संवेदनशील होती हैं। ये पंत्तियाँ भी लगभग पंक्तिपत्र की पत्तियों की तरह लम्बे पर्णवृन्त पर दो श्रेणियों में रहती हैं / साधारणतया पत्तियों का फैलाव क्षैतिज (Horizontol) होता है / पंक्तिपत्र और कमरख दोनों में ही प्रत्येक पत्ती किसी भी प्रकार की उद्दीपना द्वारा गिरकर प्रत्युत्तर देती है, बाद में चेतनालाभ होता है। एक पर्ण की प्रबल उत्तेजना के कारण आसपास के पर्ण भी उत्तेजित हो जाते हैं और फिर हमारे सामने सब सवेदनशील पत्तियों की ऊर्ध्वगामी तरंगित गति का एक अदभुत दृश्य उपस्थित हो जाता है।