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________________ अध्याय 6 . वनस्पति की निद्रा अनेक पौधों के पर्णक प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते हैं। अन्धकार होते ही वे पूर्णतः बन्द हो जाते हैं और प्रकाश होने पर फिर खुल जाते हैं। हमारी आँखें निद्रा की अवस्था में बन्द रहती हैं। यही देखकर यह मान लिया गया था कि पर्णकों का बन्द होना ही वनस्पति का सोना है। यह समानता केवल कल्पनामात्र है। पर्णकों का इस प्रकार बन्द होना. दोपहर के तेज प्रकाश की उद्दीपना के कारण भी पाया जाता है। __जीवन की कितनी ही अनैच्छिक (Involuntary) क्रियाएँ कभी विराम नहीं लेतीं, वे दिन-रात लगातार चलती रहती हैं, प्राणियों में, हृदय की धड़कन बराबर होती रहती है। पाचन और ऊतकों की वृद्धि-सम्बन्धी क्रियाएँ भी बिना रुके होती रहती हैं। इसी प्रकार वनस्पति में भी सारे दिन अंगों की स्थानीय मांग पूरी करने के लिए खाद्य पदार्थों का परिवाह होता रहता है और दूसरे दिन के लिए भी सामग्री एकत्र होती रहती है। वृद्धि भी होती रहती है। अंग भी चोटों को भरते हुए बढ़ते जाते हैं / जीवन एक निद्रा-रहित क्रिया-कलाप है। फिर भी थोड़े समय के लिए हम अचेतन हो जाते हैं और बाह्य घटनाओं के प्रति चेतना-रहित हो जाते हैं। इस प्रकार हम प्रतिदिन एक चक्र से गुजरते हैं जिसे सोना और जागना कहा जाता है। वनस्पति सोती है या नहीं, इस प्रश्न का निश्चित उत्तर इस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है कि क्या वनस्पति दिन और रात दोनों ही समय बाह्य घटनाओं से एक-सा अवगत रहती है। यदि नहीं, तो क्या कोई ऐसा समय होता है जब इसकी प्रतिबोधन-शक्ति खो जाती है और फिर क्या कभी ऐसा भी समय होता है जब यह सजगता की चरम सीमा तक जाग्रत होती है ? फिर यह कैसे जाना जाय कि वनस्पति सोती है या नहीं ? जब हम यह जानना चाहते हैं कि हमारा मिन सोया है या नहीं तब हम उसे झकझोर कर पूछते हैं, क्या तुम जगे हो ? यदि वह जगा है तो चिल्लाता है-"हाँ"। यदि वह आधा जगा है तो कुछ अस्पष्ट उत्तर देता है / परन्तु यदि वह पूरी तरह सोया रहता है तो कुछ भी
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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