________________ 208 वनस्पतियों के स्वलेख तीव्रता बढ़ जायगी। इसके विपरीत चरता के कम होने पर कणों द्वारा संवहन क्षीण हो जायगा और परिशमित भी हो सकता है। कणों की चरता और संवहन-शक्ति कार्यान्वित होने या न होने से बढ़ती या घटती है। उद्दीपना-रहित तंत्रिका निष्क्रिय और अचेत रहती है ; किन्तु उद्दीपना देने पर यह ऊर्जामय हो जाती है और साथ ही अत्यधिक संवाही भी। विचार द्वारा उद्दीपना हमारी विचार-शक्ति को बढ़ाती है। इस प्रकार संवेदना करने वाले तंत्रिका-आवेग की तीव्रता न केवल उद्दीपना की शक्ति द्वारा निश्चित होती है वरन् तंत्रिका भी कणों की परिवर्ती दशा द्वारा संशोधित होती है। तंत्रिका-आवेग पर आणविक प्रवृत्ति का प्रभाव अधिक तर्क-वितर्क करने पर हम आवेग के आणविक विक्षोभ के प्रसारण से विपरीत आणविक प्रवृत्तियों के अंतर्गत आवेग की वृद्धि या अवरोध तक पहुंच जाते हैं / गेंदों की कतार के स्थान पर अब हम पुस्तकों की कतार की कल्पना करें। दाहिने छोर की अन्तिम पुस्तक पर यदि हम आघात करें तो वह बायीं ओर गिरेगी, अपने निकट वाली पुस्तक को भी धक्का देकर गिरायेगी और इस प्रकार क्रम से सब पुस्तकें लुढ़क जायँगी। यदि पुस्तकों को बायीं ओर झुकाकर रखा जाय तब उनका विन्यास ऐसा होगा कि एक मन्दतर आघात द्वारा वे उलट-पलट जायेंगी और आवेग की गति को बढ़ा देंगी। विपरीत दिशा में उनका झुकना, उनकी पूर्व प्रवृत्ति को ऐसा कर देगा कि आवेग घट जायगा या समाप्त हो जायगा। क्या तंत्रिका में विपरीत आणविक विन्यास. लाना सम्भव है, जिससे एक स्थान पर अधिसंवाही उद्दीपना का पारेषण दक्षता से होगा और वह संवेदक होगा और दूसरे स्थान पर एक प्रचण्ड उद्दीपना द्वारा एक तीव्र तरंग ले जाते समय समाप्त हो जायगा, और इस प्रकार लुप्त हो जायगा? इन सैद्धान्तिक कल्पनाओं का अब संपरीक्षण होना चाहिये। तंत्रिका के परमाणुओं को आवेग के जाने के अनुकूल होने के लिए बाध्य करना होगा। इसके लिए एक ध्रुवीय विद्युत्-शक्ति की आवश्यकता है। विद्युत्-धारा की ध्रुवण (Polarising) क्रिया इस तथ्य द्वारा दिखायी गयी है कि जब जल से भरी एक नाँद के भीतर वह बायीं ओर से दाहिनी ओर जाती है तो उद्जन अणु दाहिनी ओर मुड़ जाते हैं और जब धारा को उलट दिया जाता है तब वे बायीं ओर मुड़ जाते हैं। इसी प्रकार तंत्रिका के परमाणु-विद्युत्-धारा के जाने के समय