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________________ 178 वनस्पतियों के स्वलेख की उत्तेजना के पारेषण का न्यूनन करती हैं। पर्णवृन्त पर चर पीनाधार से एक निर्दिष्ट दूरी 30 मिलीमीटर पर एक निश्चित तीव्रता का विद्युत्-आघात देकर स्वाभाविक वेग पाया जा सकता है / इसमें उद्दीपना की तीव्रता बाद के संपरीक्षणों में स्थिर बनी रहती है / आघात का समय अभिलेख में एक उदग्र रेखा द्वारा अंकित होता है / प्रतिस्वन-अभिलेखक, थोड़े-थोड़े समय पर, जैसे एक सेकेण्ड के दसवें भाग पर, क्रमिक बिन्दु बनाता है और इस प्रकार उद्दीपना देने और पर्ण की परिणामी गति, जो ऊपर जाने वाले मोड़ द्वारा बतायी जाती है, दोनों के अन्तराल का माप चित्र १०५--लाजवन्ती के पर्णवन्त में पारेषण के वेग का निश्चयन। दो निम्न अभि लेख 30 मि० मी० पर परोक्ष उद्दीपना की अनुक्रिया के हैं। प्रत्यक्ष उद्दीपना का ऊपरी अभिलेखे गुप्त अवधि को बताता है। 10 वेग प्रति सेकेण्ड अभिलेखक / लेता है। उददीपना और अनुक्रिया का अन्तराल 16.2 अन्तरों पर दिखता है, इस अन्तर का मान 01 सेकेण्ड होता है (चित्र 105) / सम्पूर्ण अन्तराल इस प्रकार 1.62 सेकण्ड हुआ / इस प्रणाली की विश्वस्तता प्रमाणित करने के लिए दो क्रमिक अभिलेख लिये जाते हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि दोनों ही संपरीक्षणों में स्वाभाविक अवस्थाओं में एक ही समय लगता है। अभिलिखित समय में ही पीनाधार का अदृश्य समय ( Latent period) भी होता है। यह अदृश्य समय, मोटर-यंत्र चालू करने में जो समय लगता है, उसे दिखाता है। इस अदृश्य समय की लम्बाई अर्थात् उद्दीपना और अनुक्रिया को अन्तराल पीनाधार को प्रत्यक्ष उद्दीपना देकर निर्दिष्ट किया जाता है / प्रस्तुत घटना में यह 0 12 सेकेण्ड था और 30 मिलीमीटर की दूरी तक आवेग के पारेषण का वास्तविक समय 1.62-0.12 सेकेण्ड अथवा
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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