________________ सतावर सोत्रा के पत्ता-जैसा होता है। वह पत्ता टहनियों के प्रारम्भ से ही निकलता है, और अन्त तक निकलता है तथा टहनियों के दोनों ओर होता है। इन पत्तियों से समुद्र के रेत-जैसी बास आती है / इसके छोटे; किन्तु सुगन्धित पुष्प होते हैं। इसके वृक्ष के ऊपर छोटे-छोटे काँटे होते हैं। बौर की तरह इसमें भी छोटेछोटे फल के गुच्छे निकलते हैं, और पकने पर इसका रंग लाल होता है। औषध में इसकी जड़ का प्रयोग होता है। एक-एक वृक्ष की सौ-सौ जड़ें होती हैं / इसी से इसका नाम शतमूली और शतपदी भी है / इसके पत्ते झीने और अधिक होते हैं। मालूम होता है कि ताँत, जैसे.इकट्टी बाँधकर रखी गई हो-ऐसे ही वह बँधी रहती है। शतावर की जड़ के ऊपर पतली; किन्तु पीले रंग की छाल होती है। उसे निकाल देने पर भीतर का सफेद गूदा निकल जाता है। उस गूदे के बीच में एक कड़ी डंठी होती है / जड़ खाने पर मीठी मालूम होती है। इसकी जड़ नीले रंग की होती है / उसे छीलकर सुखाते हैं / इसे शतावर कहते हैं / यह छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है। किन्तु दोनों में कोई भेद नहीं होता / वर्षा के आरम्भ में यह हरी होती है और फूल आते हैं। गुण-शतावरी गुरुः शीता तिक्ता स्वाद्वी रसायनी / ___ मेधाग्निपुष्टिदा स्निग्धा नेत्र्या गुल्मातिसारजित् // शुक्रस्तन्यकरी बल्या वातपितास्त्रशोथजित् / -भा० प्र० सतावर-भारी, शीतल, तीती, स्वादिष्ट, रसायन, मेधा