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________________ गिलोय सं० गुडूची, हि० गिलोय, ब० गुलंच, म० गुलवेल, गु० गुलो, क० अमरदवल्ली, तै० गोधूचि, ता. सिन्दीलफोदि, प० गलाह्व, फा० गिलाई, अ० गिलोई, अँ० गुलंचा-Gulancha, और लै० टिनोजपोरा कार्डिफोलिया-Tinospora Cardi Folia. विशेष विवरण-गिलोय की बेल भारत के प्रायः सभी प्रान्तों में होती है। यह वृक्षों पर स्वतः फैला करती है। प्रत्येक गाँठों से दो-दो भाग निकलते हैं। किन्तु धीरे-धीरे वे भी जड़ पकड़ लेते हैं / पत्ते, पान के पत्ते से मिलते-जुलते और कुछ नीले रङ्ग के होते हैं / फूल गुच्छों में और छोटा-छोटा होता है। फल मटर के समान होते हैं; और पकने पर लाल रंग के मनोहर दीख पड़ते हैं / बेल, पत्ते और जड़ सभी व्यवहार में लाए जाते हैं। गुण-ज्ञेया गुडूची गुरुरुष्णवीर्या तिक्ता कषाया ज्वरनाशिनी च / दाहार्तितृष्णावमिरक्तवात प्रमेहपाण्डुभ्रमहारिणी च ॥-रा० नि० गिलोय-भारी, उष्णवीर्य, तिक्त, कषाय; तथा ज्वर, दाह, पीड़ा, तृष्णा, वमन, वातरक्त, प्रमेह, पाण्डु और भ्रमनाशक है / विशेष उपयोग (1) सब प्रकार के प्रमेह पर एक
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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