________________ ( 7 ) प्रस्तुत पुस्तक के लिखने में मुझे आयुर्वेद के प्रायः अधिकांश निघंटुओं एवं चरक आदि से साहाय्य प्राप्त हुआ है। साथ ही आयुर्वेदोद्धारक स्वर्गीय शंकर दाजी शास्त्री पदे महोदय के "आर्यभिषक" नामक मराठी ग्रंथ के गुजराती अनुवाद से भी कुछ सहायता ली गई है। अतएव मैं उन लोगों का सादर आभार अंगीकार करता हूँ। अन्त में मैं उन कृपालु समालोचकों एवं विज्ञ पाठकों से निवेदन कर देना चाहता हूँ कि प्रस्तुत पुस्तक में जो त्रुटियाँ मिलें, उनसे मुझे अवगत करा दें, ताकि अगले संस्करण में वे दूर की जा सकें; क्योंकि यह सम्भव नहीं कि इस पुस्तक में त्रुटियों का अभाव न हो / साथ ही, मनुष्य सर्वज्ञ नहीं कहा जा सकता। किं बहुना। 0 महाशक्ति-भवन ) बुलानाला, काशी 1-12-1633 ) निवेदकहनूमानप्रसाद शर्मा