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________________ किसी विषय का विशिष्ट ज्ञान होना / प्रस्तुत पुस्तक में वनस्पतियों के विषय की ज्ञातव्य बातों का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त कराने की चेष्टा की गई है। अस्तु / इस पुस्तक का नाम कहाँ तक सार्थक है, इसे अनुभवी पाठक एवं विद्वजन ही समझ सकते हैं। . अंग्रेजी भाषा में वनस्पति-सम्बन्धी अनेक पुस्तकें हैं; किन्तु उनसे हमारे पाठकों का क्या लाभ ? प्रस्तुत पुस्तक में उन्हीं वनस्पतियों का समावेश किया गया है, जो साधारण रीति से सर्वसाधारण एवं सभी प्रान्तों के निवासियों के लिए सुगम एवं सुलभ हैं / साथ ही उनके सुगम उपयोग द्वारा बड़े एवं भयंकर रोगों से छुटकारा पाने का भी उपाय बतलाने की चेष्टा की गई है। प्रायः दो वर्ष का समय हुआ, जब.लोगों ने "आहार-विज्ञान' को अपनाकर मुझे उत्साहित किया, तब मेरी इच्छा हुई कि एक पुस्तक इस ढंग की क्यों न लिखी जाय / किन्तु अनेक पारिवारिक मंझटों एवं अपनी आकस्मिक अस्वस्थता तथा चिकित्सा-व्यवसाय में संलम होने के कारण समयाभाव ने भी विघ्न का साथ दिया और मैं अपने विचारों को कार्यरूप में परिणत न कर सका। इधर अस्वस्थता की दशा में ही एक दिन बातों के सिलसिले में मेरे परम प्रिय मित्र ठाकुर विजयबहादुरसिंहजी बी० ए० महोदय ने इस पुस्तक को शीघ्र लिख डालने का अनुरोध किया। समय सब कुछ करा सकता है। मैंने उसी दिन सब मसाला निकाला और पुस्तक का लिखना दूसरे दिन से प्रारम्भ कर दिया।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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