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________________ प्राकृतिक चिकित्सा अपने-अपने अनुभवों को उन लोगों ने लिखना आरम्भ कर दिया / ये ही ग्रंथ दीर्घजीवी बनने में सहायक हुए / इनके मूल सिद्धान्तों का क्रमवद्ध वर्णन वेद के चतुर्थ भाग 'अथवण' में सूत्र रूप में था। इन्हीं वैदिक सिद्धान्तों की सहायता से उन्होंने रसायन विद्या की गवेषणा की थी। अब तो सभी पठित लोग इस रसायन विद्या की सहायता से वृद्धता और मृत्यु को टालने लगे हैं एवं अजर-अमर बनकर दीर्घजीवी होने लगे हैं। रासायनिक वस्तुओं में मुख्य पारा है / रसायन शास्त्री लोग पारा एवं अन्य धातुओं का मारण-जारण करके लोगों को खिलाते हैं, जिनसे रोगोत्पादक कृमि नष्ट होकर शरीर को नव यौवन प्राप्त कराने में समर्थ होते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा :: प्राकृतिक चिकित्सा के पक्षपाती लोग उसकी बड़ी प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि प्राकृतिक नियमों का पालन करने से चिकित्सा शास्त्र संसार की अनावश्यक वस्तु हो जायगी। किन्तु उन्हें समझ लेना चाहिए कि वैद्यक शास्त्र की आवश्यकता उस समय हुई थी जब भारत में चारो ओर जितेन्द्रिय ऋषि, मुनि और देवता ही निवास करते थे। हम लोग अपने पूर्व पुरुषों के शतांश भी प्रकृति-सेवक नहीं है और न सदियों तक हो सकते
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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