SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन्हें वाध्य किया कि वे लोग इसकी रचना श्लोक और कारिकाओं में करें। गत पन्द्रह वर्षों की बात होगी-जिस समय मैं अपने मातामह स्वर्गीय पूज्य भिषप्रत्न पण्डित छन्नूलालजी महाराज से आयुर्वेदशास्त्र की शिक्षा पारहा था, उस समय यदि किसी अवसरविशेष पर मैं किसी बात को नोट कर लेने की इच्छा प्रकट करता तो वे कहते-"लिखकर पढ़ना मूखों का काम है।" वास्तव में उनके इस कथन में बड़ी सत्यता है। उस समय के लोग अत्यन्त मेधावी होते थे / उन्हें किसी पुस्तक की टीका या भाष्य से सम्बन्ध न था। उस प्राचीन काल में जो पूर्ण संस्कृतज्ञ होता था वही आयुर्वेदशास्त्र का अध्ययन और अध्यापन कर सकता था। आजकल-जैसी धाँधली न थी। अस्तु / ___ वनस्पति हमारे लिए क्यों उपयोगी है-उसका व्यवहार क्यों करना चाहिए-आदि विषयों पर मैं इस पुस्तक के प्रारम्भिक अंश में प्रकाश डाल चुका हूँ। किन्तु अब यह भी बतला देना आवश्यक प्रतीत होता है कि मैंने प्रस्तुत पुस्तक की रचना क्यों की। __ यह निर्विवाद सिद्ध है कि आधुनिक वैज्ञानिकों ने वनस्पतियों के विषय में जो गवेषणा की है, वह बहुत अंशतक सफल हुई है। वे प्रत्येक वनस्पति के विषय में पूर्ण दत्तचित्त होकर खोज कर रहे हैं / बल्कि इसे उत्तेजन देने के लिए "बोटामी" की शिक्षा का भी पूरा प्रबन्ध है; किन्तु वे जिस बात का अन्वेषण कर रहे हैं,
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy