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________________ निवेदन आयुर्वेद वेद का एक महत्त्वपूर्ण अंग है, बल्कि यों कहना चाहिए कि यह पञ्चम वेद ही है / इसी अति प्राचीन शास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग चिकित्सा है। आजकल वह चिकित्सा कई भागों में विभाजित है-वनस्पति, रस, शल्य आदि। पर एक तो आयुर्वेद यों ही जटिल है, दूसरे हमारी अज्ञानता ने बनस्पतिचिकित्सा का बहुत बड़ा ह्रास किया है / वनस्पति के विषय में हम उतना ही ज्ञान रखते हैं, जितना अतीत काल की गाथा का / हम शास्त्रों को पढ़कर भी कुछ नहीं समझ सकते / उनको आकृति का तो हमें एकदम ही ज्ञान नहीं है। यहाँ तक कि प्रत्यक्ष देखते हुए भी यह नहीं समझ सकते कि यह क्या वस्तु है। इतनी अन. भिज्ञता होते हुए भी अपने को शिखर पर पहुँचा हुआ समझते हैं। यह कितनी बड़ी मूर्खता है। यदि यह कहा जाय कि यह केवल हमारी मूर्खता का फल है, तो नितान्त अन्याय होगा। जिस समय हमारे आयुर्वेद-शास्त्र की रचना हुई है, उस समय आजकल-जैसे मुद्रणालय न थे; उस समय तो हम भोजपत्रों और ताडपत्रों पर ही कुछ लिख-लिखाकर रखते थे। अन्यथा विशेष भाग तो कण्ठस्थ हो रहा करता था / यही कारण है कि धीरे-धीरे उसका अंग लुम होता गया / इसी कण्ठस्थ के झगड़े ने
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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