________________ वनस्पति-विज्ञान 256 यम होती है / इसे मलने से बड़ी तीव्र और सुन्दर गन्ध निकलती है। यह दो प्रकार की होती है। एक की पत्ती एकदम हरी होती है और दूसरे की कुछ श्याम रंग की होती है। एक प्रकार की बनतुलसी भी होती है। इसका पेड़ प्रायः पुराना होने पर दो फिट तक ऊँचा पाया जाता है। भारतवर्ष की यह वस्तु बड़ी उपयोगी है / वैष्णव लोगों की तो यह प्राण है। इसकी मंजरी किसी जगह भी छोड़ देने से अनेक पेड़ उग आते हैं। गुण-तुलसी कटुका तिक्ता हृद्योष्णा दाहपित्तकृत् / दीपनी कुष्टकृच्छ्रास्त्रपार्श्वरुक्कफवातजित् / / शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणेस्तुल्या प्रकीर्तिता ।-शा० नि० तुलसी-कड़वी, तीती, हृद्य, उष्ण, दीपक तथा दाह-पित्तकारक एवं कुष्ठ, मूत्रकृच्छ, रक्तविकार, पार्श्वशूल और कफ-वातनाशक है / काली तुलसी-भी सफेद के समान ही गुणवाली कही गई है। विशेष उपयोग (1) शीतज्वर में-तुलसी और श्रदरख के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए / (2) प्रामातीसार और रक्तातीसार में तुलसी की जड़ का चूर्ण पान के साथ खाना चाहिए। (3) कर्णशूल पर-तुलसी का रस गरम करके छोड़ें। (4) रक्तस्राव और चक्कर में तुलसी के रस में शक्कर मिलाकर पीना चाहिए।