________________ 255 तुलसी अशोक-मधुर, शीतल, अस्थिसन्धानकारक, प्रिय, सुगन्धित, कुमिकारक, कषैला, उष्ण, तीता शरीर की कान्ति बढ़ानेवाला, स्त्रियों के शोक को दूर करनेवाला, ग्राही तथा पित्त, दाह, श्रम, गुल्म, उदररोग, शूल, आध्मान, विष, अर्श, सब प्रकार के फोड़े, तृषा, शोथ, अपची और रक्तविकारनाशक है। विशेष उपयोग (1) रक्तप्रदर में अशोक की छाल, समभाग दूध और पानी के साथ पकाई जाय, केवल दूध शेष रहने पर शीतल करके पिलाना चाहिए। (2) सब प्रकार के प्रदर पर-अशोक की छाल और रसवत, चावल के धोअन के साथ पीस-छानकर तथा शहद मिलाकर पीना चाहिए। ___ (3) पित्तज प्रमेह में अशोक के काढ़े में घी, मिश्री और शहद मिलाकर पीना चाहिए / तुलसी सं० हि० ब० म० गु० तुलसी, क० एरेडतुलसी, तै० तुलसी, अ० उलसीबदरुत, फा० रेहान, अ० ह्वाइटविजिल-White Basil, और लै० ओसिमम आल्बं-Ocimum Album. ... विशेष विवरण-तुलसी के वृक्ष सब जगह पाए जाते हैं। गृहस्थ लोग इसकी पूजा करते हैं। इसकी पची गोल और मुला