________________ सेमल 245 कन्दोस्य मधुरः शीतो मलस्तम्भकरो मतः / शोफ दाहं च पित्तं च सन्तापं चैव विनाशयेत् ॥-नि० र० सेमल-मधुर, वृष्य, बल्य, कषैली, शीतल, पिच्छिल, हलकी, चिकनी, स्वादिष्ट, रसायन, शुक्रल, श्लेष्मल, धातुवर्द्धक तथा रक्तपित्त, पित्त और रक्तदोषनाशक है / सेमल की छालग्राही, कषैली और कफनाशक है। सेमल का फूल-शीतल, तीता, भारी, स्वादिष्ट, कषैला, वातल, ग्राही, रूखा तथा कफ, पित्त और रक्तदोषनाशक है। सेमल का फल-भी पुष्प के समान ही गुणवाला है। सेमल का कंद-मधुर, शीतल, मलरोधक तथा, शोथ, दाह, पित्त और सन्तापनाशक है। विशेष उपयोग (1) प्रदर में-सेमल की छाल का चूर्ण, अथवा इसके काँटे का चूर्ण दूध और मिश्री के साथ लें। (2) मूत्रकृच्छ में-सेमल का चूर्ण, मिश्री के साथ लें। (3) बिच्छू का विष-रविवार को पुष्यनक्षत्र में सेमल के उत्तर भाग की जड़ इस प्रकार निकाल कर लाएँ, जिसमें अपनी छाया न पड़े और बिच्छू का विष जहाँ तक व्याप्त हो, तीन बार उस जड़ को फेर देना चाहिए; और उसे थोड़ा घिसकर लगाना एव पिलाना भी चाहिए। (4) उपदंश में-सेमल के कंद का चूर्ण छः माशे इक्कीस दिनों तक दोनों समय खाकर ऊपर से दूध में सेमल का कंद घिसकर पीना चाहिए / दूध और चावल खाना चाहिए /