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________________ वनस्पति विज्ञान 236 जाता है। यह स्वयं उगता है / यह करोमंडल के किनारे और विशेष करके नेलूर और मछलीपट्टम के जिले की रेतीली भूमि में होता है / इसकी जड़ लम्बी और नारंगी के रंग की होती है। इसमें सूती कपड़ा रंगने से अच्छा रंग आता है। इससे भूरा, जामुनी और नारंगी का रंग भी तैयार किया जाता है। देशी छींट का पक्का रंग पित्तपापड़ा की जड़ से ही तैयार किया जाता है / सीलोन से इसकी जड़ यूरोप आदि स्थानों में भेजी जातो है। यह बोया भी जाता है; किन्तु इसकी अपेक्षा स्वयं उगनेवाला अधिक गुणद और उपयोगी होता है / इसकी जड़ यद्यपि छोटी होती है; तथापि एक सेर जड़ से एक पाव रंग निकल आता है / यह समुद्रतट की सूखी, हलकी और रेतीली जमीन पर अपनेआप कसरत से होता है / बोये पित्तपापड़ा की जड़ दो फिट लम्बी और ऊपर रेशेवाली होती है। इसमें से मजीठी रंग निकलता है / दक्षिण देश के रंगरेज इसका उपयोग करते हैं। गुण-पर्पटः शीतलस्तिक्तः संग्राही वातकोपनः / लघुः पाके च कटुको हरेत् पित्तकफज्वरान् // रक्तदोषारुचीर्दाहग्लानिभ्रममदाजयेत् / प्रमेहवान्तितृक्तपित्तानां च विनाशकः // अस्य शाका तु संग्राही शीता वातकरा लघुः / तिक्ता रक्तरुजं पित्तं ज्वरं तृष्णां च नाशयेत् // . कर्फ भ्रमं च दाहं च नाशयेदिति कीर्तितम् / -नि० र०
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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