________________ 235 पित्तपापड़ा (2) कुत्ता के विष पर-बकाइन की जड़ का रस पीएँ। (3) आँख की गरमी पर-बकाइन का फल पीसकर बाँधना चाहिए। (4) प्रमेह पर-बकाइन का फल, चावल की धोअन के साथ पीस और घी मिलाकर पीना चाहिए / (5) शीतपित्त में बकाइन का रस, सरसों के तेल में पकाकर लगाना चाहिए। पित्तपापड़ा सं० पर्पट, हि० पित्तपापड़ा, ब० क्षेत् पापड़ा, म० पित्तपापड़ा, गु० पित्तपापड़ो, क० पर्पाक, तै० पर्पाकमु, अ. बकलतल मलीक, फा० शातरा, अँ० जस्टिसिया प्रोकबेंसJusticia Procumbans, और लै० फुमेरिया पार्वीफ्लोराFumeria Parviflora. - विशेष विवरण-पित्तपापड़ा का वृक्ष होता है। इसकी दो जाति हैं / एक में नीला और दूसरे में लाल फूल आता है। किन्तु लाल फूलवाला विशेष गुणद होता है। यह दो-तीन हाथ वक सीधा बढ़ता है / इस पर बारीक काँटे या रोएँ होते हैं। यह बरसात के प्रारम्भ में पैदा होता है, और जाड़े के आरम्भ में सूख जाता है / इसके पत्ते लम्बे; किन्तु पतले और नुकीले होते हैं / इन पर पहले सफेद फूल निकलता है। किन्तु बाद नीला और लाल हो